Friday 27 February 2015

  कैलाश गुफा जशपुर जिला की यात्रा 


मै वर्ष २०१३ में गर्मी के मौसम  में रायपुर से  शासकीय कार्यवश अम्बिकापुर नगर गया था।  मुझे घूमने का शौक है ,मैंने वहा  पर  लोगो से आसपास के घूमने की जगह की जानकारी ली। लोगो ने मैनपाट ,सामरीपाट  कैलाशगुफा आदि जगह की जानकारी दी।श्री नेताम जी मेरे मित्र है , जो की वर्तमान में पंचायत ट्रेनिंग सेंटर में फेकल्टी मेंबर के रूप में कार्यरत है ने मुझे अपने साथ अगले दिन  कैलाश गुफा देखने  चलने को  आग्रह किया। जगह की खासियत पूछने पर इस जगह के बारे में उन्होंने बताया कि   अम्बिकापुर नगर से पूर्व दिशा में 60 किमी. पर स्थित सामरबार नामक स्थान है,



 जहां पर प्राकृतिक वन सुषमा के बीच कैलाश गुफा स्थित है। इसे परम पूज्य संत रामेश्वर गहिरा गुरू जी जिनका उस छेत्र में काफी सम्मान था,  नें पहाडी चटटानो को तराश कर निर्मित करवाया है। यहाँ  महाशिवरात्रि पर विशाल मेंला लगता है। इसके दर्शनीय स्थल गुफा निर्मित शिव पार्वती मंदिरबाघ माडाबधद्र्त बीरयज्ञ मंड्पजल प्रपातगुरूकुल संस्कृत विद्यालयगहिरा गुरू आश्रम है।
 इस जगह का विवरण जानने  के लिए लगा सुचना फलक  :-

तब मुझे भी ख्याल आया की इस जगह की तारीफ जब मै रायगढ़ में  पदस्थ था तो भी अनेको   मित्रो ने की  , किन्तु मै यहां  आ  नही पाया था।  दूसरे दिन  जीप से श्री नेताम और उनके  एक और मित्र के साथ चल पड़े ,रास्ते काफी सुहावने थे। कहि कहि तेज़ हवा के झोको से ख्याल आता की ये जगह पवन चक्की या इनसे ऊर्जा पैदा कर उसका उपयोग किया जा सकता है। कुछ जगह छत्तीसगढ़ शासन की पहल भी इस दिशा में दिखाई दी।  


 वैसे    जशपुर  जिला के  ब्लॉक मुख्यालय  बागीचा   से यह स्थान   लगभग 120 किलोमीटर दूर है। यह स्थान जशपुर जिले को पर्यटन के क्षेत्र में अलग पहचान देने वाला प्रमुख दर्षनीय स्थल है। कैलाश गुफा को  पहाड़ में चट्टानों को  मात्र 27 दिनों में खुदाई और  काटने से बनाया गया है। समीपस्थ ग्राम सामरबार  में  संस्कृत महाविद्यालय  है। यह हमारे देश में   दूसरा संस्कृत महाविद्यालय   है।  जो की श्री रामेश्वर गहिरा गुरू जी की प्रेरणा से  निर्मित है।  





बगीचा बतौली मुख्य सड़क के बाद कैलाश गुफा पहुंचने वाली 14 कि.मी. की उबड़ खाबड़ सड़क पर जगह जगह नुकीले पत्थर और गड्ढो के चलते हमे  यहॉं  पहुंचने में दिक्कते तो हो रही थी ,पता नही इस सड़क को क्यों नही बनाया गया है।  बगीचा बतौली की पक्की सड़क छोड़ने के बाद ग्राम मैनी से गुफा पहुंचने के लिए कच्ची सड़क पर पत्थरों की भरमार और बड़े बड़े गड्ढों के चलते कैलाश गुफा पहुंचने से पहले ही हमारा  मन खिन्न सा  हो गया ।जशपुर जिले को पर्यटन के क्षेत्र में अलग पहचान देने वाला यह  स्थल कैलाश गुफा तक पहुंचने वाली सड़क की बदहाली  के चलते ही शायद गर्मी के दिनों में भी यह स्थान सुनसान ही था।  महज 14 कि.मी.की दूरी को दो घंटो में तय करने से बाहर का सैलानी इधर दूसरी बार आने का नाम नहीं लेते  है। बीच रास्ते में वाहन खराब होने के बाद दूर दूर तक गाव नही होने से  मदद मिलने की उम्मीद भी  नहीं रहती  है। 

अंबिकापुर  से यहॉं  पहुंचे मेरे साथ के लोगो  ने बताया कि इस धार्मिक और रमणीय स्थल पर वे एक दशक पहले आए थे।उस समय यहॉं  की कच्ची सड़क की हालत आज की तुलना में  काफी अच्छी थी। किन्तु अभी तो जीप को भी सम्हाल कर चलाना पड़  रहा था। मुरम जैसी लाल मिटटी वाली भूमि आलू ,टमाटर की खेती के लिए प्रसिद्ध  है। 
\किन्तु  कैलाश गुफा के समीप पहुचने पर चारो ओर ऊंची पहाड़ियां तथा दूर दूर तक फैली हरियाली के साथ  झर झर  झरते  झरनों का रमणीय दृष्य को देखते ही हमारी  सारी  थकान उतर गयी  यहाँ पर सुन्दर   झरने लगभग ४० फ़ीट ऊपर से गिरते और उची उची पहाड़ो के बीच  घने दरख्तो के बीच से बहते हुए  और केले ,आम  के  काफी तादाद में लगे  वृक्ष यहाँ की  सुंदरता और आकर्षण बढ़ा रहे हैं। कैलाश गुफा में  पहाड़ों  को काटकर बनाये गए गुफा वाले कमरो जिसके बाहर की दिवार में टपकते पानी की बुँदे और इसमें  स्थापित प्राचीन शिव मंदिर का आकर्षण के चलते भी यह पर्यटन स्थल अब  दूर दूर तक अपनी पहचान बना चुका है। बताते है की यहां  पर अनेको दुर्लभ जड़ी बूटी पाई जाती है।  यहॉं  पर सैलानियों की सुविधा पर  काफी ध्यान  देने की आवश्यकता है। जगह के सुनसान होने के कारण कैलाश गुफा आश्रम के पुजारी का कहना था कि इस स्थल पर आवागमन के साधन का अभाव तथा सड़कों की दुर्दषा के चलते सैलानियों की भीड़ पर विपरीत असर पड़ा है। कैलाशगुफा के आस पास रेस्ट हाउस बना कर इस स्थल को विकसित किया जा सकता है। शासन को इस दिशा  में सार्थक प्रयास करने  चाहिए। 



 कैलाश गुफा का प्रमुख   प्राचीन शिव मंदिर के आसपास काले बन्दरों का उत्पात भी बढ़ गया है। इस रमणीय स्थल पर प्रमुख आकर्षण का केन्द्र के रूप में काफी उंचाई से गिरने वाला झरना को माना जाता था। इन दिनों लगभग 40 फीट की ऊँचाई से गिरने वाली पानी की मोटी धारा भी अब लुप्त होकर यहॉं  पानी का पतला झरना ही रह गया है। किन्तु यहॉं पर पत्थरों में काई और कचरे की भरमार रहने से कोई भी सैलानी यहॉं  नहाने का आनंद नहीं ले पाता है। मेरे ड्राइवर ने भी  ट्यूबवैल में नहाना पसंद किया। ,वहां के स्थानीय लोगो से  हमने केले और आम खरीद कर खाए ,वहाँ के आम काफी मीठे है  और किसी भी प्रकार के अन्य नास्ते सामग्री  वहां  उपलब्ध नही थे।  हम लोगो ने  कैलाश गुफा में व्यस्थाके आभाव के  चलते   जल्द से जल्द अँधेरा होने से पहले  वापस लौटने में ही अपनी भलाई समझे । क्युकी यहाँ  पर जंगली जानवर भी आते रहते है। 

    Devendra Kumar Sharma
113 ,sundarnagar ,Raipur ,chattisgadh

Sunday 15 February 2015

 जादू -टोना  करने वालो की भूमि जब छत्तीसगढ़ को समझा जाता था - (land of witches )                             (कमज़ोर दिल वाले इसे न पढ़े )

जन साधारण में  टोनही या डायन  का अंधविश्वास

लोग माने या नही माने किन्तु यह सत्य ही है की  अंधविश्वास के चलते टोनही ,डायन या प्रेतीन , का नाम आज भी  छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में भय पैदा कर देने के लिए पर्याप्त है।  सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र ही नहीं शहरी इलाकों में भी टोना-टोटका को लेकर आम लोगों के मन में संशय बना रहता है।  इस कथित काला जादू को लेकर टोना टोटका और टोनही जैसे संवेदनशील मुद्दे आज भी छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों मे  अपना प्रभाव रखती है। और इससे बचने के उपाय आम जन आज भी  करते ही रहते है।   


मेरे इस लेख को प्रकाशित करने का उद्देश्य अंधविश्वास फैलाना नही है ,और न ही इसके प्रमाणिकता के लिए  मेरे पास कोई प्रमाण ही है। इसे आप वास्तविक भी न  ही माने।मैंने सिर्फ  बचपन से आज तक  लोगो से सुनी हुयी बाते ,और लोगो से हुयी चर्चा और  census of  india  १९६१ में श्री के . सी दुबे ,और उनकी टीम जिन्होंने बालोद जिले (तब दुर्ग ) में गुंडरदेही के ग्राम कोसा का सर्वे किया था ,में लिए  गए  तथ्य  जो की  पुस्तक में लिखा गया है  ही इसका आधार है। लेकिन आज के सन्दर्भ में भी ये मान्य तथ्य नही है। सिर्फ मनोरंजन के लिए ही मेरे द्वारा लिखा गया है जो की सिर्फ सुनी सुनाई ही बातो पर है। 


 पर भूतप्रेत का अस्तित्व  साधु संतो, धार्मिक आध्यात्मिक उल्लेखों और परामनोविज्ञान की शोध और निष्कर्षों में भी उनके अस्तित्व के कई प्रमाण मिलते हैं। फिलहाल इतना ही कहा जा सकता है कि मृत्यु के बाद जीवन का कोई भी अस्तित्व रहता हो या नहीं। लेकिन इतना तो कहा जा सकता है कि भूतप्रेत कितने भी ताकतवार हों, वह मनुष्य का कोई अहित नहीं कर सकते। खैर छोड़िये इस बात को आगे 




 पुस्तक के अनुसार हेविट ने १८६९ में छत्तीसगढ़ के बारे में अपने रिपोर्ट में लिख कर प्रकाशित किया था , की छत्तीसगढ़ को बाहर के लोग चुड़ैलों की भूमि (land of witches ) समझते है। और उनकी धारणा  2nd  वर्ल्ड वॉर ख़त्म होने  के बाद भी छत्तीसगढ़ के   आर्थिक विकास होने के बावजूद भी कायम थे। देश की आज़ादी के बाद नए कल कारखाने खुलने लोगो के रोज़गार के लिए शहर की और पलायन होने से और उनका शहरीकरण होने से  इस कलंक से धीरे धीरे  मुक्ति मिलने लगी। और यह कलंक अंदरुनी ,और पहुंच विहीन गाव तक सिमित हो गए। जो की अभी भी कायम है.

 छत्तीसगढ़ में ये विचेस मर्द है तो टोन्हा और औरत हो तो टोनहिन कहलाने लगे। यह शब्द टोना मतलब काला जादू से लिया गया है। 

 श्री के सी दुबे तत्कालीन डेपुटी सुप्रिन्टेण्डेन्ट   सेन्सस ऑफ़ इंडिया  के अनुसार उन्होंने सुना था की   बिन्द्रानवागढ़ के गांव देबनाई का  नागा गोंड का उदाहरण दिया है जो की ( टाइगर ) शेर   के रूप में आकर 08 लोगो को नुकसान पंहुचा चूका है। और जिसे वर्ष 38 या 39  में ब्रिटिश शासन ने गिरफ्तार किया था। जादू टोना का गहन जानकार था। और वेश बदलने में माहिर था।  और इस बात की प्रमाण तत्कालीन रिकॉर्ड में दर्ज़ भी है। 

 श्री जी जगत्पति तत्कालीन  जॉइंट सेक्रेटरी गृह मंत्रालय  भारत शासन ने भी २७/७/1966 को लिखा था की भिलाई स्टील प्लांट जैसे आधुनिक तीर्थ से 15 मील  के भीतर के गावो तक में लोग बुरी आत्माओ की उपस्थिति को आज भी लोग मानते है।  तो न जाने पहुच विहीन  छेत्रो में क्या   हाल होगा। इसके निजात दिलाने हमे प्रयास की आवश्यकता है। ( उन्होंने यह बात दुर्ग के  समीपस्थ गाव कोसा के सम्पूर्ण  विलेज सर्वे करने के बाद  उसके  आधार से लिखा था) यह पुस्तक मेरे पास  जबकि  मै  गुंडरदेही विकासखण्ड में वर्ष 89 -90 में विकास खंड अधिकारी के पद में था तब  उपलब्ध होने पर उसके ही आधार से  सम्बंधित गाव के लोगो से ही बात करने का नतीजा  है। 

 जादूटोने का प्रशिक्षण  (traning in witch craft )-


 कहा  जाता है की ये टोना जानने वाले मरने से पहले किसी न किसी अन्य युवा  आदमी या औरत  को ट्रेनिंग  देकर  अपनी विद्या सीखा जाते है।ऐसा भी विश्वास किया जाता है की ये टोनहिन कुछ अशरीरी शक्तियों को अपने कंट्रोल में रखते है। जैसे की वीर मसान  जो को जमीन  में गड़े हुए मुर्दो को   अपने  वश में किये जाते है। और यह इनके ट्रेनिंग का हिस्सा है।नौसिखिए  को  नग्न ही उनके ट्रेनर 21  रात्रि को ताज़ा गड़े मुर्दो की कब्र  और शमशान घाट की परिक्रमा करने भेजते है। वे स्वयं छुपे हुए इनपर नज़र रखते है।  जब इनकी आदत बन जाती है और ये भयभीत  होकर भाग खड़े नही हुए  तथा प्रमाणित कर दिए की वे ऐसी जगह में अकेले जाने में सक्छम है  तो    इनसे भूत प्रेत का आह्वान कराया जाता है। साथ ही इन्हे मंत्रसाधित पीली हल्दी से सनी चावल भी दी जाती है ,जिसके  फेकने से बुरी शक्तिया इनसे दूर रहती है।फिर इनके ट्रेनिंग का दूसरा पार्ट जिसमे एक जाति  विशेष  के कुंवारे  मृत व्यक्ती की खोपड़ी में चावल पका कर खाना है। ताकि वह उसके लिए वीर मसान बन सके। इस पूरी ट्रेनिंग के दौरान वे  पूर्णतः नग्न रहते है। सूत के एक धागा भी धारण नही करते है। और इस कंडीशन में जब वे घर से  बाहर  निकलते है। तो पुरे घर के सभी सदस्य को कुछ नशीली पदार्थ खिला पिला जाते है ताकि वे सोये ही रहे और उनका राज़ राज़ ही रहे कोई  दीगर न जाने। क्युकी ये घर से ही नग्न निकलते है और वैसे ही वापस आते है। मतलब की  यह भी   माना  जाता है  है कि   टोनही आधी रात को निर्वस्त्र होकर अपने घर से मात्र  एक  दिया लेकर  श्मशान घाट की ओर पैदल चली जाती है। और वहां उसके जैसे ही अनेक  महिलाये मिलकरतंत्र साधना करती  है। जनश्रुतियों के मुताबिक देर रात घर से दूर श्मशान में  पहुचने के बाद  मल का दीपक बनाती है। उस दिए में बाती लगाकर मुत्र व  तेल भरकर बिना माचिस के ही प्राकृतिक तरीके से  आग जला देती है। छत्तीसगढ़ की ज्यादातर लोक कथाओं में टोनही के बाल खोल कर झूमने -  झूपने का वर्णन मिलता है। कुछ लोगो के कथनानुसार   टोनही को पीपल ,डुमर  आदि के के पेड़ के नीचे बैठकर अमावस्या की रात 12 बजे से बाल खोलकर सर हिला-हिला कर तंत्र  साधना करते हुए भी बताया जाता  है।माना जाता है कि इस तंत्रसाधना के  दौरान उसके भीतर पृथ्वी की तमाम बुरी शक्तियों का प्रभाव आ जाता है। तांत्रिकों का भी दावा हैं की इस साधना के दौरान उसे कोई भी प्रभावित नहीं कर सकता। तंत्र मंत्र के जानकार बताते है कि काला जादू की शक्ति इतनी प्रभावशाली होती है कि टोनही आसपास मौजूद किसी भी  को  महसूस कर लेती है। ऐसा भी कहा जाता है कि टोनही को साधना करते हुए अगर किसी व्यक्ति ने देख लिया तो उसकी मौत हो जाती है। या गंभीर रूप से बीमार हो जाता है। स्वाभाविक है इस तरह के दृश्य देख कर कमज़ोर दिल वाले तो सदमे से ही मर जावेंगे ,थोड़ा मज़बूत होगा तो  भी भय से बीमार हो  ही जायेगा। 


 हरेली त्योहार

आम धारणा हैं की आषाढ़ माह की अमावस्या को हरेली त्योहार के दिन  टोनही की तंत्र साधना होती है। इस दिन को छत्तीसगढ़  प्रदेश में हरेली त्योहार के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। और स्थानीय लोग उस दिन जादू टोना  की भय से  यात्रा करना पसंद नही करते है। या शाम के बाद घर से बहार निकलना पसंद नही करते।यह दिन बैगाओं से लेकर जादू टोना करने वालों के लिए सबसे अच्छा दिन  माना  जाता है ऐसे कहा जाता है क़ि   ये उस समय दीखते नही सिर्फ इनकी मुह से गिरती लार जो की जलती हुई रहती है ही बाहर के लोगो को दीखता है। लोकमान्यता है की इस अवस्था में इन्हे देखने वाला मर भी सकता है। ये  भटकटइया  (.... )  के जड़ो को चबा चबा कर चूसते है। और इसमें फॉस्फोरस जैसे कुछ पदार्थ भी मिलाते है जो  की हवा के संपर्क में आकर  जलता है।कथाओ के मुताबिक टोनही की पहचान उसकी जीभ के नीचे जलने जैसी   काले रंग के मौजूद निशान से होती है।


 लेकिन मेरे एक मित्र के अनुसार कुछ औरतो में जो की एक प्रकार के नशे के आदि होते है ,के उस नशे के पदार्थ के कारण  ही वे निशान  होते है। और इसी जड़ी बूटी जो की लार के साथ इनके मुह से गिरती है वही  अग्नि जैसी  ज्योति भी पैदा करती है। जिसे भी दूर से रात के अँधेरे में देख लोग भयभीत हो जाते है। बैगाओं या जानकार  की माने तो यह निशान उनके कुछ और जड़ी बूटी के  तंत्र साधना के दौरान सेवन के  कारण  बनता है।  टोना करने वाले अपने  तेज नज़र व  अंदर तक वेधति  हुई  आँखों (sharp penetrating eyes )  से भी  पहचाने जा सकते है। लेकिन यह आवश्यक नही है।यह दिन बैगाओं से लेकर जादू टोना करने वालों के लिए सबसे अच्छा दिन  माना  जाता है। तांत्रिकों का ये  भी दावा हैं की इस साधना के दौरा उसे कोई भी प्रभावित नहीं कर सकता।

जन साधारण में  टोनही या डायन  का अंधविश्वास 

लोग माने या नही माने किन्तु यह सत्य ही है की  अंधविश्वास के चलते टोनही ,डायन या प्रेतीन , का नाम आज भी  छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में भय पैदा कर देने के लिए पर्याप्त है।  सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र ही नहीं शहरी इलाकों में भी टोना-टोटका को लेकर आम लोगों के मन में संशय बना रहता है।  इस कथित काला जादू को लेकर टोना टोटका और टोनही जैसे संवेदनशील मुद्दे आज भी छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों मे  अपना प्रभाव रखती है। और इससे बचने के उपाय आम जन आज भी  करते ही नज़र आते  है।   


टोनही कौन बनती है और पहचान 

छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में लोगों की धारणा है कि आम लोगों की तरह गांव में रहने वाली ऐसी महिलाएं ही टोनही बनती हैं, जिनके बच्चे नहीं होते हैं।समाज से कटे होते है ,घर परिवार में उपेक्षित रहते है।  कई लोग ऐसी महिलाओं को डायन के नाम से भी पुकारते हैं। अपना  प्रदेश ही नहीं बिहार,झारखण्ड, ओड़ीसा  और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में आज भी विधवा और अकेली उपेक्षित  गरीब  औरतें इसका दंश झेल रही हैं।   हमारे ग्रामीण इलाकों में टोनही के बारे में मत है कि वे नदी किनारे  चटिया-मटिया नाम के भूत को बुलाती है। इनके माध्यम से टोनही जिसे चाहे उसे अपने वश में कर सकती है और मर्जी के मुताबिक काम भी ले सकती है। 

बचाव के  रास्ते  :-- हरेली के दिन ऐसी मान्यता है कि बैगा ,ओझा और तंत्र मंत्र के जानकारों द्वारा घर में   सिद्ध नीम की टहनी बांध लेने से जादू टोने  का प्रभाव घर में नहीं आता है। हरेली के दिन गांव में हर किसी के दरवाजे पर नीम की टहनियां लटकते हुए देखा जा सकता है। गाव के  घरों की दीवारों पर गोबर से एक विशेष प्रकार का चिन्ह (चित्र ) बनाया जाता है। घर-आंगन को गाय के गोबर से लीपा जाता है। ताकि  टोना का प्रभाव बेअसर हो जावे ।

 ग्रामीण क्षेत्रों में टोनही के नाम पर प्राय:उल्लू ऑर काली बिल्ली  भी इनके काम में मदद करते है। और लोगो के  घर के ऊपर  में ही रात को आवाज़ लगा कर भय पैदा करते है। शायद ये चूहे खाने मकान  के छत पर जाते है।  भूत का अस्तित्व है या नही इस पर उस विषय के विशेषज्ञ विचार करेंगे पर यह कडवा सच है कि भूत, प्रेत  शब्द सुनते ही हम डर जाते है और उन स्थानो में जाने से  परहेज करते है जहाँ इनकी उपस्थिति बतायी जाती है। यदि सही  मे भूत केविश्वास को यदि इस दृष्टिकोण से देखे कि हमारे जानकार पूर्वजो ने कुछ जगह के  दोषो की बात को जानते हुये उससे भूत को जोड दिया हो ताकि आम जन उससे दूर रहे। इस  जगह में न जाये। और किसी भी तरह की दुर्घटना के शिकार न हो जावे। 

अंधविश्वास का दुष्परिणाम - उन औरतों को जुल्म झेलना पड़ता है जो विधवा हैं और अकेले रहती हैं। उनकी जायदाद हड़पने या रेप करने की बदनीयत से अनर्गल आरोप लगाकर परेशान किया जाता है। कभी निर्वस्त्र कर सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जाता है तो कभी गांव छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है। ताकि उनकी मकान और अन्य  संपत्ति हड़पी जा सके।  

टोनही निवारण कानून 2005 -  छत्तीससगढ़ राज्य में शासन ने टोनही जैसी सामाजिक बुराइयो से  से निपटने के लिए इसके खिलाफ 2005 में टोनही निवारण कानून बनाया है। इस कानून के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति  किसी महिला को टोनही बताकर प्रताड़ित करता है  वाले व्यक्ति को पांच से 10 साल तक की सजा हो सकती है और हत्या करने पर धारा 304 के तहत मुकदमा भी चलाया जाता है। इसके बाद भी टोनही के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित किया जाना बदस्तूर जारी है।

 अंत में यह तो एक आम धारना जो की अन्धविश्वास पर आधारित और  मनगढंत ही है। इसके प्रत्यक्चदर्शी आज तक कोई भी नही है  जो की इसे प्रमाणित कर सके। ये सिर्फ कमजोर ,नासमझ बुद्धि वाले ही है जो की इस सुनी सुनाई बातो पर  विश्वास कर समाज के  निरपराध लोगो को नुकसान पहुचाने का कार्य करते है। हमे इसके लिए लोगो को जागरूक करने  जन जागरण करने की आवश्यकता आज भी है। ताकि इसके नाम से हो रहे प्रतारणा को रोक जा सके। मेरे अगले पार्ट में छत्तीसगढ़ के मान्यता के अनुसार भूत प्रेत ..... सम्बन्धी अन्य जानकारी। यदि आपको यह पार्ट पसंद आया हो तो कमेंट जरूर करे। ( इस लेख के किसी भी पार्ट के उपयोग से पूर्व मेरी  अनुमति  प्राप्त करना आवश्यक होगा ) देवेन्द्रकुमारशर्मा रायपुर,छत्तीसगढ़