Saturday 16 July 2016

मृतात्मा मेरी ऊँगली में सवार. ,,,,,,,.. रुकने का नाम ही न ले ,मै पसीना पसीना (आपबीती )
,
---बात तब की है जबकि हमने इलेवन्थ का एग्जाम दिया था। रिजल्ट नही आये थे। मुहल्ले के और दोस्तों ने रामशलाका का उपयोग किया ।
लेकिन रिजल्ट गड़बड लग रहा था उन्हें। उन लोगो ने कहि सुना था की,मृतात्मा को बुलाने से वो सही सही बात बताती है।
मुझे भी शामिल कर एक बंद कमरे में पुराने कैलंडर के पीछे सफ़ेद भाग पर पर परकाल से गोल घेरा बनाकर स्केल की मदद से बीचो बीच सीधी लाइन खींचा गया।
जिसमे एक ओर यस २रे ओर नो लिखा गया। रात के 11 बज रहे थे। चारो ओर सन्नाटा पसरा हुआ था। कहि दूर से क्भी कभी कुत्ते की भोकने कि आवाज वातावरण को और डरावना बना दे रही थी ।
दोस्तों का कहना था कि आत्मा को प्रकाश पसंद नही। बंद कर दिए गये लाइट। मोमबत्ती की प्रकाश कमरे को भयावह रूप दे रही थी। हमको अपना रिजल्ट जानना था सो बैठे रहे।
फिर शुरू हुआ आव्हान आत्मा के नाम से मृतकों के नाम लेकर बुलाने का सिलसिला ।
एक पुरानी शीशी के ढक्कन को बीचोबीच गोल घेरे मे रखा गया। फिर जिन के भी नाम याद आ रहे थे आमन्त्रित किया। एक नाम पर ऊँगली टस से मस ही नही हुई । हम चारो एक दूसरे के चेहरे को देखने लगे।
तभी एक ने कहा यार वो साला अभी ,तो जिन्दा है उसकी आत्मा कहा से आयेगी। और हम लोग हस पड़े ।
फिर मरे लोगो के नाम लेकर कन्फर्म किया. फिर शुरू हुआ आत्मा को आव्हान करने का कार्यक्रम।
एक आत्मा का नाम लेकर आने के लिए बोला गया कि हे श्री,,,, जी आप भूमि लोक में आकर हमारे कुछ प्रश्नो का जवाब दे ,मुझे बड़ी उत्सुकता हो रही थीं।
मैने कहा पहले मेरा रिजल्ट बताओ।
दोस्त जिसकी ऊँगली ढक्कन के ऊपर थी। ने कहा , हे पवित्र आत्मा आप आ गए है तो प्रमाण देवे। अचानक मोमबत्ती की लौ तेज़ हो गई। और दोस्त की उँगली के नीचे का ढक्कन काँपते हुए यस लिखे की ओर चलकर फिर वापस अपनी जगह में आ गया।
दोस्त ने बोला की ये देवेन्द्र हमारे बीच है , इलेवन्थ मे पास होगा की नही।
ढक्कन नही हिला ,मैंने कहा हे पवित्र ,,,,,जी की आत्मा प्लीज़ बताइये न ये हमारे जीवन मरण का सवाल हैं।
फ़ैल होने पर बड़ा भाई पीटेगा ,व् घर वाले भी नाराज़ होंगे। प्लीज़ ,,प्लीज़। अचानक ढक्कन पहले गोल घेरे मे घूमने लगा। प्लीज़ मैंने फिर से निवेदन किया।
उंगली के नीचे ढक्कन नो की ओर जाने लगा। मेरी साँस तेज़ हो गयी। लगा की फेल हो जाऊंगा। नो को टच कर ढक्कन फिर घेरे में गोल- गोल घूमने लगा। और फिर अचानक यस की ओर चल पडा। ह,,,,,, गहरी साँस ली मैंने।
फिर वापस डगमग करते गोल घेरे और फिर एकबार यस में।
मेरी ख़ुशी का ठिकाना नही रहा। लेकिन एक बार नो में क्यू मैं सोचने लगा।
(इस में भी एक रहस्य था जिसे आगे कभी बताउंगा )
फिर उस आत्मा से छमा मांग उन्हें वापिस जाने का निवेदन किया गया।
अब दूसरे दोस्तों ने मुझे अपनी उंगली उस ढक्कन में रख उसके भविष्य पूछने बोला।
आधेघंटे बीत चूका था मोमबत्ती भी काफी जल चुकी थी। वातावरण भी रहस्य मय हो गया था। पता नही क्यू कुत्ते भी जोर जोर से भौक रहे थे ।
हम लोग सोच नही पा रहे थे की किसे बुलाए। तभी याद आया कि हाल हि में एक महिला नेत्री विमान दुर्घटना में मर गयी है। दोस्तों ने खुसुरपुसुर किया और उसके नाम पर तैय्यार हो गये।
मेरी उंगली ढक्कन पर उस गोल घेरे में रखा ही था की एक कुत्ता घर के ही बाहर ही आकर भोकने लगा , उसे पहले भगाया गया।
चूँकि मेरा रिजल्ट मृतात्मा ने घोषित कर हि दिया था ,खुश हो ऊँगली ढक्कन के ऊपर रख बैठ गया।
अब उस मृत मृतात्मा के नाम लेकर उन्हें अपने बीच आने का निमंत्रण दिया। ऊँगली हिली भी नही।
दोस्तों को लगा की जानबूझकर मैंने ठीक से आव्हान नही किया। क्यूंकि मेरा सवाल तो हल हो ही चूका था।
गम्भीरता से मैंने उनका नाम लेकर फिर आमंत्रित किया , आप आये व् हमारे जवाब देवे ।
तभी ढक्कन थोड़ा सा हिला ही था कि पता नही कहा से कुत्ता फिर आकर भोकने लगा मै डर गया।
एक दोस्त ने कुत्ते को फिर भगाया। दरवाज़ा खुलते ही हवा के झोके से मोमबत्ती बुझ गयी। फिर उसे जलाया गया। मैंने फिर शांत भाव से उस महिला मृतात्मा का नाम लेकर अपने बीच आने को निमंत्रित किया।
अचानक मेरी ऊँगली के नीचे के ढक्कन में कम्पन हुआ । हाथ जैसे मेरे अधिकार में नही रहे। गोल घेरे में ऊँगली ढक्कन सहित घूमने लगा .......,दोस्त के रिजल्ट से संबंधित सवाल किया , मेरे हाथ की उंगली कांपते हुए कभी यस कभी नो की ओर जाने लगी।
मोमबत्ती की लाइट फड़फड़ा रही थी। फिर सवाल दुहराया गया।
अचानक मेरी ऊँगली ढक्कन सहित गोल गोल घूमने लगा। रोकते भी नही रुक रहा था .
चेहरा मेरा पसीना से लथपथ। दोस्तों की भी चेहरे में हवाइयां साफ देखि जा सकती थी।
अचानक वो कुत्ता फिर कहि से आकर रोने लगा ।
कौन है रे क्या कर रहे हो ,दोस्त जिसके मकान में थे के दादा जी की आवाज़ आई और उनके डर से हाथ की ऊँगली ढक्कन के ऊपर से हटी। और डरते डरते हम लोग अपने घर की और भाग लिये।
फिर कभी नही प्लेनचिट में आत्मा नही बुलाया। क्यूंकि लगता था की उस महिला की मृतात्मा हम लोगो से बदला न ले ले । धन्यवा
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 घनघोर   जंगलो में प्राकृतिक गुफा के भीतर  खुद बना है मंदीप गुफा   में  शिवलिंग,   ठाकुरटोला गाव  में जिसके साल में सिर्फ एक दिन एक नदी को 16 बार पार करने पर मिलते हैं दर्शन


आज से १० ,वर्ष पहले  जब मैं खैरागढ़ राजनांदगांव में पदस्थ था। लोग गर्मी के दिनों में अक्षय तृतीया के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार को जंगल  के भीतर स्थित एक गुफा को देखने चलने की बात करते थे ।
 जिसे लोग मंढीप बाबा के नाम से जानते हैं। यह जगह छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में   छुईखदान ब्लॉक  में ठाकुरटोला गाव जो की गंडई  से साल्हेवारा रोड के बीच में स्थित है।
  इस जगह में    घनघोर जंगलों  के  बीच  प्राकृतिक गुफा के भीतर  एक शिवलिंग स्थापित है।  जिसे ही  लोग मंढीप बाबा के नाम से जानते हैं। निहायत ही निर्जन स्थान में गुफा के ढा़ई सौ मीटर अंदर उस शिवलिंग को किसने और कब स्थापित किया यह कोई नहीं जानता।
 आस पास  के ग्रामीणों के द्वारा कहा जाता है कि वहां बाबा स्वयं प्रकट हुए हैं। यानी शिवलिंग का निर्माण प्राकृतिक रूप से हुआ है।जिसकी पूजा ठाकुरटोला के राजवंश के सदस्य व ग्रामवासी  लोग ही वर्ष  में  एक बार करते है। अतः
 यहां बाबा के दर्शन करने का मौका साल में एक ही दिन मिल सकता है। वो भी  अक्षय तृतीया के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार को।
 दिलचस्प बात ये है कि वहां जाने के लिए एक ही नदी को 16 बार लांघना पड़ता है। यह कोई अंधविश्वास नहीं है, बल्कि वहां जाने का रास्ता ही इतना घुमावदार है कि वह नदी रास्ते में 16 बार आती है।

साल में एक ही बार जाने के पीछे पुरानी परंपरा के अलावा कुछ व्यवहारिक कठिनाइयां भी हैं। बरसात में गुफा में पानी भर जाता है,  और रास्ते भी  काफी दुर्गम हो जाते है।  जबकि ठंड के मौसम में खेती-किसानी में व्यस्त होने से लोग वहां नहीं जाते।
 रास्ता भी इतना दुर्गम है कि सात-आठ किलोमीटर का सफर तय करने में करीब एक घंटा लग जाता है। उसके बाद पैदल चलते समय पहले पहाड़ी पर चढ़ना पड़ता है और फिर उतरना, तब जाकर गुफा का दरवाजा मिलता है।
साथ ही  यह घोर नक्सल इलाके में पड़ता है, इसलिए भी आम दिनों में लोग इधर नहीं आते। साथ ही वन्य प्राणियों की भी मिलने की सम्भावना भी रहती है।

हर साल अक्षय तृतीया के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार के दिन गुफा के पास इलाके के हजारों लोग जुटते हैं।
 परंपरानुसार सबसे पहले ठाकुर टोला राजवंश के लोग पूजा करने के बाद गुफा में प्रवेश करते हैं। उसके बाद आम दर्शनार्थियों को प्रवेश करने का मौका मिलता है। गुफा के डेढ़-दो फीट के रास्ते में घुप अंधेरा रहता है।
 लोग काफी कठिनाई से रौशनी कीव्यवस्था साथ लेकर बाबा के दर्शन के लिए अंदर पहुंचते हैं।
गुफा में एक साथ 500-600 लोग प्रवेश कर जाते हैं। अभी १५ २० वर्ष पूर्व गुफा के अंदर मशाल के और बीड़ी  की धुवा ने मधुमक्खीयो  को उत्तेजित कर दिया था और उसने काफी लोगो को काट कर घायल कर दिया था।  इसलिए अंदर काफी सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है।

गुफा के अंदर जाने के बाद कई रास्ते खुलते है  , इसलिए अनजान आदमी को गुफा के अंदर  भटक जाने का डर बना रहता है। ऐसा होने के बाद शिवलिंग तक पहुंचने में चार-पांच घंटे का समय लग जाता है।
 इसलिए ग्राम के  उन व्यक्तिओ को जो प्रति वर्ष अंदर जाते रहते है लोगो के साथ झुण्ड में ही जाना उचित रहता है।
स्थानीय लोगो का  का कहना है मैकल पर्वत पर स्थित इस गुफा का एक छोर अमरकंटक में है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि आज तक कोई वहां तक नही पहुंच पाया है।  लेकिन बहुत पहले पानी के रास्ते एक कुत्ता छोड़ा गया था, जो अमरकंटक में निकला। जबकि  अमरकंटक यहां से करीब पांच सौ किलोमीटर दूर है।

Wednesday 6 July 2016

स्थानांरण नहीं हो रहा हो तो मुक्तागिरी  के दर्शन करो ...? 

 बैतूल - मेरे पसंदीदा शहर  में से एक .. डी. के. शर्मा


वर्ष 2000 में अचानक ही मुझे बैतूल  जिला में पदस्थ किया गया। बैतूल सतपुड़ा की वादियों में मध्य प्रदेश का एक जिला है जो की  इटारसी नागपुर के मध्य स्थित है।  समीप ही स्थित रेल्वे स्टेशन बरसाली  भारत के केंद्र बिंदु है। इस जिले की खास बात है कि ये देश के बिल्कुल केंद्र में बसा है।


   बैतूल शहर तीन हिस्सों में बंटा है। मेरा कार्यालय बस स्टैंड के पास ही था तो मैंने  समीप के एक लॉज में ही रहना प्रारम्भ कर दिया क्युकी समीप ही भोजनालय और पिक्चर हॉल भी था।  साथ ही  बैतूल के बस स्टैंड में  कही भी जाने को बस मिल जाती थी। रेलवे  स्टेशन  तक जाने के लिए सस्ते मे तांगा  और आसपास में अच्छा बाजार भी   है  ।


जैसे की पहले मैंने बताया  बैतूल शहर तीन हिस्सों में बंटा है। बैतूल बाजार, बैतूल गंज( रेलवे स्टेशन के पास का इलाका) और बैतूल कोठी बाजार। कोठी बाजार बस स्टैंड के पास का इलाका का नाम  है। रेलवे स्टेशन के तरफ कल्लू  ढाना और भग्गू ढाना आदि , आदि।  

ताप्ती नदी के उदगम  स्थल
 बैतूल से 45 किलोमीटर आगे मुलताई में ताप्ती नदी का उदगम स्थल है।जिसकी भी मान्यता नर्मदा जी की ही जैसी है ,और यह नर्मदा की एक सहायक नदियों में से एक है।धार्मिक मान्यता के अनुसार मा ताप्ती सूर्यपुत्री और शनि की बहन के रुप में जानी जाती है । यही कारण है कि जो लोग शनि से परेशान होते है उन्हे ताप्ती से राहत मिलती है । ताप्ती सभी की ताप कष्ट हर उसे जीवन दायनी शकित प्रदान करती है श्रद्धा से इसे ताप्ती गंगा भी कहते है । दिवंगत व्यकितयों की असिथयों का विसर्जन भी ताप्ती में करते है । म.प्र. की दूसरी प्रमुख नदी है । इस नदी का धार्मिक ही नही आर्थिक सामाजिक महत्व भी है । सदियों से अनेक सभ्यताएं यहां पनपी और विकसित हुर्इ है । इस नदी की लंबार्इ 724 किलोमीटर है । यह नदी पूर्व से पशिचम की और बहती है इस नदी के किनारे बुरहानपुर और सूरत जैसे नगर बसे है । ताप्ती अरब सागर में खम्बात की खाडी  में गिरती है ।
 बैतूल में बने बालाजीपुरम मंदिर को   देश का पांचवा धाम कहा जा रहा है। बालाजीपुरम बैतूल रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर नागपुर हाईवे पर है । और  बस स्टैंड से 10 किलोमीटर है। हर थोड़ी देर पर बालाजीपुरम के लिए बस स्टैंड से टाटा मैजिक जैसी गाड़ियां मिलती हैं। मैंने इस मंदिर का निर्माण होते देखा है।  बालाजी मंदिर पुराने नागपुर रोड पर है।बालाजीपुरम भगवान बालाजी का विशाल मंदिर के लिये प्रसिद्ध है। यह स्थान बैतूल बाजार नगर पंचायत के अन्तर्गत आता है। जिला मुख्यालय बैतूल से मात्र 7 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग 69 पर सिथत है। दिन प्रतिदिन इसकी प्रसिद्धि फैलती जा रही है। यही कारण है कभी भी किसी भी मौसम में आप इसमें जाएं श्रद्धालुओं का ताता लगा रहा है। मंदिर के साथ ही चित्रकुट भी बना है। जिसमें भगवान राम के जीवन से जुड़े विविध प्रसंगों को प्रदर्शित किया गया है। मूर्तियां ऐसे बनी है जैसे बोल पडे़ं मंदिर के पीछे से फोर लेन हाईवे गुजर रहा है।
शहर के समीप ही सोनाडीह स्थित हनुमान का मंदिर ऊपर टेकरी पर है। जो की पिकनिक के लिए अच्छी जगह है। 
साफ सुथरा  रेलवे स्टेशन
सामान्य तौर  में भोपाल के दिशा से  से बैतूल आने वाली ट्रैन समय से पहली  ही आ जाती  है। ,
बैतूल का रेलवे स्टेशन काफी साफ सुथरा है। रेलवे स्टेशन के बाहर खूबसूरत उद्यान बना है जिसमें तरह तरह के फूल हैं। दूसरे दर्जे का प्रतीक्षालय भी एक दम चमचमाता हुआ साफ सुथरा है। शौचालय की सफाई भी अति उत्तम है। ऐसे साफ सुथरे रेलवे स्टेशन कम ही दिखाई देते हैं।  स्टेशन परिसर में बड़ी बड़ी तस्वीरें लगी है जिसमें बैतूल जिले के आदिपासी डंडा नृत्य, आदिवासी गायकी नृत्य, तेजपत्ता के जंगल, सागवान के जंगल और दूसरे तरह के जंगलों के बारे में तथा मुक्तागिरी जैन तीर्थ स्थान सम्बन्धी  जानकारी दी गई है।
स्थानांणतरण नहीं हो रहा हो तो मुक्तागिरी के दर्शन करो....?   
मुक्तगिरी प्रसिद्ध जैन मंदिर है जो की उचे पहाड़ों और झरनों की बीच स्थित है। यह जगह शासकीय नौकरी करने वालो में भी अत्यन्त ही प्रसिद्ध है ,बोलते है की यदि वहां  पर जाकर कोई भी  ट्रान्सफर की अपेक्छा करता है तो वह निश्चित ही पूरा हो जाता है। यही सोचकर मई भी वह पर दर्शन के लिए गया था ,और चाहे जो भी मूल कारण हो 07 में मुझे म प से छत्तीसगढ़ से स्थानांतरण  आदेश मिल गया था ,और यही बात मेरे बाद मेरे एक मित्र ने भी बताई थी।
विकासखण्ड  भैसदेही  की ग्राम पंचायत  थपोडा में स्थित  है महान जैन तीर्थ मुक्तागिरी। मुक्तागिरी  अपनी सुन्दरता, रमणीयता और धार्मिक प्रभाव के कारण लोगों को अपनी और आकर्षित  करता है । इस स्थान पर दिगम्बर जैन संप्रदाय के 52 मंदिर है।  इन मंदिरों की तथा क्षेत्र का संबंध श्रेणीक विम्बसार से बताया जाता है। यहां मंदिर में भगवान पाश्र्वनाथ की सप्त फणिक प्रतिमा स्थापित है जो शिल्पकारी  का बेजोड नमूना है। इस क्षेत्र में स्थित  यह एक  मन कों शांति और सुख देने वाला जगह  है। निर्वाण क्षेत्र में आने वाले प्रत्येक व्यकित को यहां आकर सुकून मिलता है।

 राजा  जैतपाल बैतूल जिले में 11 वीं शताब्दी में भोपाली क्षेत्र में राज करता था। उसकी राजधानी खेड़लादुर्ग में थी। इस दुर्ग के तक्कालीन अधिपति राजा जैतपाल ने ब्रहम का साक्षात्कार न करा पाने के कारण हजारों साधु सन्यासियों को कठोर दण्ड दिया था। इसकी मांग के अनुसार महापंडितों योगाचार्य मुकुन्दराज स्वामी द्वारा दिव्यशकित से ब्रहम का साक्षात्कार कराया था तथा इस स्थान पर दण्ड भोग रहे साधु सन्यासियों को पीड़ा से मुक्त कराया था उन्होंने हजारों सालों से संस्कृत में धर्मग्रंथ लिखे जाने की परम्परा को तोड़ा। उन्होनें मराठी भाषा मे लिखें  सिन्धु की महत्ता पूरे महाराष्ट्र प्रान्त में है। यह स्थान पुरातत्व एवं अध्यात्म की दृषिट से अति प्राचीन है।
तांगा की  सरपट सरपट  दौड़

बैतूल की सड़कों में  में आज भी तांगा सरपट सरपट  दौड़ लगाता  है। वह पर मुझे  काफी दिनों  के बाद  फिर तांगे पर सफर का मौका मिला। कोठी बाजार से रेलवे स्टेशन के लिए आटो वाले 10 रुपये लेते हैं तो तांगे वाले 5 रुपये में ही  पहुंचा देते हैं।   घोड़ाडोंगरी ब्लॉक में स्थित सारणी बिजली पैदा करने का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
 मलाजपुर स्थित भूत भागने की जगह भी काफी प्रसिद्ध  है।  मलाजपुर में गुरूबाबा साहब का मेला प्रतिवर्ष पूर्णिमा से प्रारंभ होकर तकरीबन एक माह बसंत पंचमी तक चलता है। बाबा साहब की समाधि की मान्यता है इसकी परिक्रमा करने वाले को प्रेत बाधाओं से छुटकारा मिलता है। यहां से कोर्इ भी निराष होकर नहीं लौटता है। इस वजह से मेला में दूर-दूर से श्रद्धालु आते है। मलाजपुर जिला मुख्यलाय से 42 किलामीटर की दूरी पर विकासखण्ड चिचोली में सिथत है।
 मलाजपुर में गुरूबाबा साहब का समाधि काल 1700-1800 र्इसवी का माना जाता है। यहां हर साल पौष की पूर्णिता से मेला शुरू होता है। बाबा साहब का समाधि स्थल दूर-दूर तक प्रेत बाधाओं से मुकित दिलाने के लिये चर्चित है। खांसकर पूर्णिमा के दिन यहां पर प्रेत बाधित लोगों की अत्यधिक भीड रहती है। यहां से कोर्इ भी निराश होकर नहीं लौटता है। यह सिलसिला सालों से जारी है। उन्होंने कहां कि यहा पर बाबा साहब तथा उन्हीं के परिजनों की समाधि है। समाधि परिक्रमा करने से पहले बंधारा स्थल पर स्नान करना पड़ता है, यहां मान्यता है कि प्रेत बाधा का शिकार व्यकित जैसे-जैसे परिक्रमा करता है वैसे वैसे वह ठीक होता जाता है। यहां पर रोज ही शाम को आरती होती है। इस आरती की विशेषता यह है कि दरबार के कुत्ते भी आरती में शामिल होकर शंक, करतल ध्वनी में अपनी आवाल मिलाते है। इसकी लेकर महंत कहते है कि यह बाबा का आशीष है। मह भर के मेला में श्रद्धालुओं के रूकने की व्यवस्था जनपद पंचायत चिचोली तथा महंत करते है। समाधि स्थल चिचोली से 8 किमी. दूर है। यहां बस जीप या दुख के दुपाहिया, चौपाहिया वाहनों से पहुंचा 
जा सकता है। मेला में सभी प्रकार के सामान की दुकाने सजती है