Tuesday 28 October 2014


28/10/2014

   बेवकूफ लोग ही चलते है क्या ,,ईमानदारी और नियम से..............?

जीवन के कुछ अनुभव ऐसे होतें हैं जो जिन्दगी भर आपका पीछा नहीं छोडतें . एक दु:स्वप्न की तरह वे हमेशा आपके साथ चलतें हैं और कई बार तो कर्ज की तरह आपके सर पर सवार रहतें हैं
इनमे से कुछ न कुछ प्राय सभी अधिकारी के जीवन में गुजरता है। अधिकारी छोटा हो या बड़ा मायने नही रखता है।
ईमानदारी और नियम से चलने के कारण ऐसे अधिकारियो को उन्हें बार-बार यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ स्थानांतरित किया जाता है। । उन्हें पदोन्नतियाँके अवसर भी कम ही मिलता है ,क्युकी ऐसे लोग अपने विभाग के उच्चाधिकारियों के नज़र से मुर्ख और बेवकूफ लोग ही होते है।
 शासकीय नौकरी . के सेवा काल मैं मैंने पाया कि बड़े अफसर भी लड़ते हैं और छोटी और बड़ी दोनो तरह की बातों पर - हाँ, इतना अवश्य है कि उनकी लडा़ई प्रायः खुलेआम न होकर लुकछिपकर होती है। इस लडा़ई के प्रायः बड़े 'ठोस' कारण होते हैं, जैसे :
1. मनभावन पद :
( महेश चंद्र द्रिवेदी एक पुलिस अधिकारी के जिनके भी जीवन में घठित संस्मरण से कुछ बाते भी ली गई है साभार )
1971 सेंट्रल पुलिस ट्रेनिंग कालेज, माउंट आबू सीनियर आफिसर्स कोर्स पूर्ण कर लखनऊ लौटने पर कई दिनों की प्रतीक्षा के उपरांत मेरी नियुक्ति एस.पी., बस्ती के पद पर कर दी गई थी, अतः आदेश मिलने की दूसरी शाम 27 मार्च को मैं कार से बस्ती के लिए चल पड़ा था। बाराबंकी में मेरे साढ़ू भाई डी.एम. नियुक्त थे, अतः रात्रि उनके साथ बिताने के इरादे से वहीं रुक गया। दूसरी सुबह जब मैं वहाँ से बस्ती के लिए चलने वाला था तो श्री सिंह, एस.पी., बस्ती का फोन आया कि मैं अभी बस्ती न आऊँ, दो-चार दिन बाद आऊँ। मैंने इसके पीछे अंतर्निहित कारण समझे बिना ही कह दिया,
'ठीक है, पर मैं फर्स्ट अप्रैल को चार्ज नहीं लेना चाहूँगा, अतः 31 तारीख को सुबह चलकर अपराह्न चार्ज ले लूँगा।'
31 तारीख को मेरे बस्ती पहुँचने पर श्री सिंह ने मुझे चार्ज सौंप दिया और मेरी आवभगत भी की, परंतु उनके बस्ती से जाने के बाद वहाँ के कई ब्राह्मणों, जो मेरे आने से प्रसन्न थे, ने मुझसे कहा, 'आप ने आने में देर क्यों कर दी, इस बीच उन्होंने कई एम.एल.एज. को अपना स्थानांतरण रुकवाने हेतु दौड़ा रखा था।'
मुझे तब तक यह भान नहीं था कि जनपद का एस.पी. बनने के लिए अन्य नियुक्तियों की अपेक्षा बड़ी मारकाट रहती है, पर बाद में मैंने पाया कि जिले के चार्ज के लिए न केवल मारकाट रहती है वरन आने वाले एस.पी. अथवा कलक्टर से जाने वाले एस.पी. अथवा कलक्टर की अनबन भी प्रायः हो जाती है क्योंकि जाने वाला यह सोचता है कि आने वाले ने उसे सप्रयत्न अपदस्थ कर दिया है। मुझे स्वयं यह स्थिति तब झेलनी पड़ी जब 1978 मैं एस.एस.पी., बरेली के पद पर तैनात हुआ। मेरे पूर्वाधिकारी अपना परिवार एस.एस.पी. के बँगले में छोड़कर नवनियुक्ति पर चले गए थे, अतः मैं सर्किट हाउस में रह रहा था। मैं इस बात से अनभिज्ञ था कि मेरे पूर्वाधिकारी यानी म साहब की पत्नी अपने पति के बरेली से स्थानांतरण का दोषी मुझे मान रही हैं, अतः एक शाम मैं सौजन्यवश एस.एस.पी. बँगले पर अपने पूर्वाधिकारी के परिवार से मिलने चला गया। म साहब जरा कड़क मिजाज की निकलीं और उन्होंने मुझे बँगले, जो नियमानुसार मेरा हो चुका था, में अंदर आने को ही नहीं कहा; वरन म साहब की माँ बाहर निकलकर खा जाने वाली निगाहों से मुझे घूरते हुए बोलीं, '...... साहब तो गोरखपुर में हैं।' माता जी म साहब से अधिक कड़क मालूम पड़ीं और मैं उल्टे पाँव वापस सर्किट हाउस आ गया।
अभी कुछ माह पूर्व बदायूँ जनपद में डी.एम. के स्थानांतरण पर बडा़ रोचक प्रसंग घटित हुआ था। जनपद में एक्साइज के ठेके की नीलामी की तिथि निश्चित हो चुकी थी और पता नहीं शासन को क्या सूझी कि उस तिथि के ठीक दो दिन पहले वहाँ के डी.एम. का स्थानांतरण कर दिया। यह सर्वविदित है कि एक्साइज के ठेके में लाखों-करोड़ों के वारे-न्यारे होते हैं। नए डी.एम. साहब राकेट की स्पीड से कार चलवाकर रातों रात बदायूँ पहुँच गए और दूसरे दिन दस बजते ही चार्ज लेने की उत्कंठा डाक बँगले में डेरा डाल दिया। फिर सुबह होते ही डी.एम. के बँगले पर फोन पर फोन घुमवाना शुरू किया - पर डी.एम. साहब से सम्पर्क कैसे हो जब बँगले की सारी टेलीफोन लाइनें पहले ही काट दी गई थीं। जब नए डी.एम. साहब की बेचैनी बढ़ने लगी, तो वह बँगले के लिए रवाना हो गए,पर वहाँ से अपना-सा मुँह लेकर वापस होना पड़ा जब चपरासी से यह कहलवा दिया गया कि साहब वहाँ हैं नहीं और पता नहीं कि कहाँ गए हैं। पुराने डी.एम. साहब ठीक नीलामी के समय कलेक्टोरेट अवतरित हो गए और उन्होंने 'पूर्व-निर्धारित' ठेकेदारों के पक्ष में नीलामी करवा दी। तत्पश्चात उसी दिन नए डी.एम. को चार्ज मिल गया। कहते हैं कि एक्साइज के उन ठेकेदारों ने चपरासी से लेकर डी.एम. तक सभी का 'हक' पहले ही अदा कर दिया था, और नए डी.एम. के चार्ज ले लेने पर ठेकेदारों को दुबारा हक का भुगतान करना पड़ता, जिससे बचाने का 'नैतिक' दायित्व निभाने हेतु पुराने डी.एम. दो दिन के लिए अंतर्ध्यान हो गए थे।
कुछ वर्ष पूर्व अखबारों प्रदेश के अधिकारियों हेतु एक बड़ा मार्गदर्शक एवं प्रेरणादायक प्रसंग छपा था - 'एक महामहिम की राज भवन से रुखसती पर वहाँ रखे हुए कई बहुमूल्य तोहफे गा़यब पाए गए'। स्पष्ट है, कभी-कभी स्थानांतरण बड़े-बड़ों के लिए बड़ी मुफीद चीज साबित होते है।
कुछ वर्ष पूर्व अखबारों प्रदेश के अधिकारियों हेतु एक बड़ा मार्गदर्शक एवं प्रेरणादायक प्रसंग छपा था - 'एक महामहिम की राज भवन से रुखसती पर वहाँ रखे हुए कई बहुमूल्य तोहफे गा़यब पाए गए'। स्पष्ट है, कभी-कभी स्थानांतरण बड़े-बड़ों के लिए बड़ी मुफीद चीज साबित होते है।
2 . फसल :
डी. एम., एस.पी. आदि व जनपदीय अधिकारियों के बँगलों में काफी खाली जमीन हुआ करती है जो सरसों, गेहूँ, आलू आदि पैदा करने के काम आती है। इन फसलों के बोने में लगी लागत का उद्गम प्रायः . साहब को ज्ञात नहीं होता है वरन जनपद के कृषि विभाग के अधिकारियों को ज्ञात होता है क्योंकि स्थापित प्रथा के अनुसार जोतने-बोने, खाद-पानी लगाने से फसल कटवाने और उसे ऊँचे भाव पर बिकवाने का 'प्रशासनिक कर्तव्य' कृषि विभाग के अधिकारियों का बनता है। सरकार को हर वर्ष अच्छा मजाक सूझता है कि वह ऐन उसी वक्त तबादले का आदेश भेज देती है जब गेहूँ पक रहा होता है अथवा आलू खुदने को तैयार होने लगता है। फिर नया अधिकारी पद पर काबिज होने के कारण फसल पर अपना अधिकार समझता है और पुराना उस पर लगी लागत को स्वयं की गाढ़ी कमाई बताने लगता है। कभी-कभी तो बँटवारे के टर्म्स शांतिपूर्वक तय हो जाते हैं, पर कभी-कभी इस बँटवारे में मैडम साहिबान ऐसा भड़क जाती हैं कि दोनों अधिकारियो के रिश्तों के बीच फसल खड़ी होकर उन्हें चिढ़ाती रहती है। भड़काने के इस 'नेक' काम में अर्दली-चपरासी भी बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
3 . अर्दली - चपरासी :
यद्यपि एस.पी., डी.एम. जैसे अधिकारियों के आवास हर जनपद इयरमार्क्ड हैं और उन्हें नई पोस्टिंग पर आवास की कठिनाई प्रायः नहीं होती है, तथापि कभी-कभी स्थानांतरण पर जाते समय कुछ अफसर बच्चों की पढ़ाई के लिए अपने परिवार को कुछ दिनों के लिए पुराने बँगले पर छोड़ जाते हैं।
ऐसी स्थिति में नए अधिकारी का परिवार मजबूरी बँगले के बजाय डाक बँगले मे रुकता है - और फिर शुरू हो जाता है अर्दलियों-चपरासियों के बँटवारे पर शीत युद्ध, जो कभी-कभी अनुकूल परिस्थितियाँ होने पर महाभारत भी बदल जाता है।
4 . जाति - पाँति -
हमारे देश के राजनीतिबाजों ने झगड़े का एक सर्वव्यापी कारण और पैदा कर दिया है जिससे अधिकारी अब एक नवीन नीति वाक्य के अनुगामी हो गए हैं :
जाति - पाँति पूछै सब कोई ,
सगो हमारी जाति को होई
यद्यपि समस्त समाज की भाँति सरकारी कर्मचारी प्रायः अपने सजातीय को ही सगा मानते हैं,, परंतु जातियों के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था हो जाने के उपरांत देखा गया है कि प्रायः किसी भी आरक्षित वर्ग (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अथवा अन्य पिछड़ा वर्ग) से आरक्षण प्राप्त कर नियुक्त हुए अधिकारी अनारक्षित जातियों के अधिकारियों से एकमुश्त वैमनस्य रखते हैं - सम्भवतः इसके पीछे उनके मन में निहित हीन भावना इसका कारण होती है। उनमें बहुत-से आरक्षण के जातीय वर्गीकरण को अपने दुष्कर्मों के परिणाम से बचने का हथियार भी बनाते हैं।
एक . अधिकारी, जो अपनी अकर्मण्यता एवं बेईमानी के लिए कुख्यात थे, का मजबूर होकर बार-बार स्थानांतरण किया गया तो उन्होंने तत्कालीन उच्चाधिकारी के विरुद्ध ही शिकायत कर दी कि अनुसूचित जाति का होने के कारण उन्हें बार-बार स्थानांतरित किया जा रहा है।
उनके अनेक सजातीय अधिकारियों ने उनके इस प्रकार के घोर अनुशासनहीन आचरण की भर्त्सना करने के बजाय गुपचुप रूप से उनकी मदद ही की और अपने अघीन नियुक्त होने पर उन्हें सर्वोत्तम वार्षिक टिप्पणी दी।
मैं तो सदैव यही मनाता रहा हूँ और आज भी मनाता हूँ कि हे ईश्वर, तू मुझे अधिकारियों के झगड़े से बचा।

अनअप्रोचेबल होना बड़प्पन की एवं प्रभावशाली होने की निशानी है ?

पूर्वकाल में कुछ ऐसे अधिकारी भी होते थे जो पुजारी के मोल्ड में फिट ही नहीं होते थे परंतु बड़ा साहब होने के कारण ऐरे-गैरे नत्थू-खैरे से मिलना या फोन पर बात करना पसंद नहीं करते थे। टेलीफोन करने पर या मिलने का प्रयत्न करने पर वे पूजागृह के बजाय बाथरूम मे, मीटिंग में या दौरे पर पाए जाते थे।अन्य प्रशासकीय दिनचर्या में भी पूजा अनेकों अवसरों पर बडा़ कारगर हथियार साबित होती है - 'साहब पूजा कर रहे हैं।'
पर जब से जमाना हाई-टेक हो गया है, साहब लोगों ने भी हाई-टेक तरीकों को अपना लिया है। अब किसी अधिकारी को फोन करने पर चपरासी या स्टेनो-बाबू से एक ही जवाब मिलता है, 'सर, साहब अभी हैं नहीं।'
'कहाँ गए हैं?'
'पता नहीं, पर आप अपना नाम व टेलीफोन नम्बर बता दीजिए। आने पर बात करा दूँगा।'
अब अगर आप उन साहब के मतलब की चीज हैं तब तो पाँच मिनट में ही आप को उनका फोन आ जाएगा क्योंकि साहब पहले से वहीं उपस्थित होते हैं, नहीं तो आप उनके फोन का इंतजा़र करते-करते सूख जाएँगे क्योंकि दूसरी-तीसरी बार आप द्वारा फोन करने पर भी वही जवाब मिलेगा।
और क्यों ऐसे-वैसों से मिलें हमारे साहब लोग, जब हमारी प्रशासकीय मान्यताओं के अनुसार अनअप्रोचेबल होना बड़प्पन की एवं प्रभावशाली होने की निशानी है

Monday 13 October 2014

         
 
  तबाही बरपाने वाले समुद्री तूफानों का 
भी  होता है विधिवत नामकरण

देवेंद्रकुमारशर्मा


बरबादी और तबाही लाने वाले समुद्री चक्रवाती तूफानों का भी 'विधिवत नामकरण' किया जाता है और इसके लिए एक पूरी प्रक्रिया अपनाई जाती है, इनका नामकरण क्रमानुसार तूफान आने से काफी पहले कर लिया जाता है और इसी क्रम के अनुसार इनका नामकरण किया जाता है। भारतीय मौसम विभाग द्वारा अत्यंत भीषण तूफान वाली श्रेणी मे दर्ज 'हुदहुद चक्रवात' का नाम इसी वर्णक्रम मानक के अनुसार ओमान ने रखा हैं।
देश के समूचे पूर्वी तट को घेरे, बंगाल की खाड़ी में उत्तरी अंडमान के पास उठे 'हुदहुद' चक्रवाती तूफान की 190 किलो मीटर की रफतार वाली तूफानी हवाएं रविवार को भीषण तबाही वाली वर्षा के साथ आंध्रप्रदेश और ओडिशा तटों पर बरबादी बरपाने के साथ जैसे सब कुछ तहस-नहस करने पर आमादा हो, तबाही के इस तांडव का रौद्र रूप कुछ धीमा जरूर पड़ेगा लेकिन फिर भी तेलंगाना, पश्चिमी बंगाल, बिहार के बाद यह पूर्वी मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, झारखंड पूर्वी उत्तरप्रदेश को भी अपनी चपेट मे लेगा.. लाखों लोगों को सुरक्षित स्थलों पर पहुंचाया गया है।
केंद्र व संबद्ध राज्य सरकारों द्वारा उठाए जा रहे एहतियाती बचाव व राहत कार्यों के बावजूद पूरा प्रशासन व जनता सांस रोके कम से कम तबाही की दुआ मना रही है, 'हुदहुद' दरअसल अरबी भाषा में 'हूपु' नाम की चिड़िया को कहा जाता है, जिसकी प्रजाति काफी कुछ कठ्फोड़वा पक्षी से मिलती जुलती है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार 1900 के मध्य में समुद्री चक्रवाती तूफान का नामकरण करने की शुरुआत हुई ताकि इससे होने वाले खतरे के बारे में लोगों को जल्द से जल्द सतर्क किया जा सके, संदेश आसानी से लोगों तक पहुंचाया जा सके सरकार और लोग इसे लेकर बेहतर प्रबंधन और तैयारियां कर सकें, लेकिन तब नामकरण की प्रक्रिया व्यवस्थित नही थी।
विशेषज्ञों के अनुसार नामकरण की विधिवत प्रक्रिया बन जाने के बाद से यह ध्यान रखा जाता है कि चक्रवाती तूफानों का नाम आसान और याद रखने लायक होना चाहिए इससे स्थानीय लोगों को सतर्क करने, जागरूकता फैलाने में मदद मिलती है और मीडिया में इस का जिक्र करने से आसानी होती है।
इनके आसान नाम से इसे याद रखने में आसानी होती है। इसी संदर्भ में बता दे कि नर्गिस, लैला, कैटरीना, नीलम, फैलीन, हेलन, नीलोफर यह सब किसी महिला का नहीं बल्कि पिछले वर्षो में दुनियाभर में आए समुद्री तूफानों का नाम है।
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार तूफानों और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नाम 1953 से मायामी नेशनल हरीकेन सेंटर और संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसी वर्ल्ड मेटीरियोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (डब्लूएमओ) नाम रखता आ रहा है, लेकिन उन दिनों में उत्तरी हिंद महासागर में उठने वाले चक्रवातों का कोई नाम नहीं रखा गया था क्योंकि विशेषज्ञों का मानना था कि इस क्षेत्र में विशेष तौर पर ऐसा करना काफी विवादास्पद था, इस काम में काफी सतकर्ता की जरूरत है।
सांस्कृतिक विविधता वाले इस क्षेत्र में नामकरण करते वक्त काफी सावधान और निष्पक्ष रहने की ज़रूरत थी ताकि यह लोगों की भावनाओं को ठेस न पहुंचाए। मगर 2004 में डब्लूएमओ की अगुवाई वाली अंतरराष्ट्रीय पैनल भंग कर दी गई और अपने-अपने क्षेत्र में आने वाले चक्रवात का नाम खुद रखने को कहा गया। इसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, श्रीलंका और थाईलैंड को मिलाकर कुल आठ देशों ने हिस्सा लिया।
इन देशों ने 64 नामों की एक सूची तैयार की है। हर देश ने आने वाले चक्रवात के लिए आठ नाम सुझाए। यह सूची हर देश के वर्ण क्रम के अनुसार है। इस क्षेत्र में आने वाला आखिरी चक्रवात जून में आने वाला 'नानुक' था, जिसका नाम म्यांमार ने रखा था।
सदस्य देशों के लोग भी नाम सुझा सकते हैं। मसलन भारत सरकार इस शर्त पर लोगों की सलाह मांगती है कि नाम छोटे, समझ आने लायक, सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और भड़काऊ न हों। वर्णक्रम के अनुसार इस बार चक्रवाती तूफान के नामकरण की बारी ओमान की थी। लंबी सूची पिछले साल भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर आए फैलीन चक्रवात का नाम थाईलैंड ने रखा था।
इस सूची में शामिल भारतीय नाम काफी आम हैं, जैसे मेघ, सागर, और वायु। पाकिस्तान की तरफ से मंजूर नामों में फानूस, नर्गिस, श्रीलंका के तरफ से माला, प्रिया, रश्मि व बांग्लादेश की तरफ से अग्नि, निशा वगैरह शामिल है।
'हुदहुद' संभवतः इस सूची का 34वां नाम है। इसका मतलब है कि अभी इस सूची में 30 नाम और हैं। चक्रवात विशेषज्ञों का पैनल हर साल मिलता है और जरूरत पड़ने पर सूची फिर से भरी जाती है।
1900 के प्रारंभ में ऐसे तूफानों के नाम महिलाओं के नाम पर रखे जाते थे। यह जानना दिलचस्प होगा कि उसके बाद भी हाल के वर्षो मे नर्गिस, लैला, कैटरीना, नीलम, फैलीन, हेलन, नीलोफर यह सब किसी महिला का नहीं बल्कि पिछले वर्षों में दुनियाभर में आए समुद्री तूफानों का नाम है।
1950 के मध्य मे नामकरण के क्रम को और भी सिलसिलेवार ढंग से करने उद्देश्य से विशेषज्ञों ने इसकी बेहतर पहचान के लिए इनके नामों को पहले से क्रमबद्ध तरीके से अंग्रेजी वर्णमाला के शब्दों के प्रयोग पर जोर दिया। इसी के तहत 1990 के शुरुआत में पहले इन का नाम 'ए' से 'एन्ने' रख गया।
ऐसा भी हुआ कि 1990 के दशक से पहले दक्षिणी गोलार्ध में आए सारे तूफानों का नाम पुरुषों के नाम पर रखा जाने लगा था लेकिन बाद में नैशनल हरिकेन सेंटर के द्वारा उष्ण कटिबंधीय तूफानों का नामकरण किया जाने लगा। इन तूफानों का नामकरण अब इंटरनेशनल कमिटी ऑफ मेटेरोलॉजिकल आर्गेनाइजेशन के हाथों में है।
यह एक रोचक बात है कि उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में आए तूफानों का नामकरण ना ही किसी खास इंसान के नाम पर की गई और ना ही अंग्रेजी वर्णमाला के शब्दों की किसी सूची से हुई बल्कि इन जगहों पर लोगों के द्वारा नाम और क्षेत्रों की परिचित चीजों पर आधार पर किया गया।
अत: उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में चक्रवाती या तूफानों का नामकरण केवल इस बात को ध्यान में रखकर किया जाता है ताकि इसके प्रति लोगों तक अधिक से अधिक और ज्यादा जागरुकता, सतकर्ता, फैलाई जा सके ताकि सरकार और लोग इसे लेकर बेहतर प्रबंधन और तैयारियां कर सकें।
उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में चक्र्वाती तूफानों के नामकरण उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में इन का नामकरण क्षेत्रीय स्तर के आधार पर किया जाता है। उदाहरण के लिए हरिकेन कमिटी ने पहले से ही हरिकेन के नामों की लिस्ट तैयार कर ली है।
उत्तरी अटलांटिक सागर के आसपास के क्षेत्रों में नामों की छ: सूची तैयार की गई है, जिसे प्रत्येक 8 सालों पर दोहराया जाता है। पूर्वी उत्तरी प्रशांत महासागर के तटों पर आने वाले हरिकेनों के नामों की यह सूची प्रत्येक छ: सालों में दोहराई जाती है।
कई बार इन के नामों को लेकर स्थानीय स्तर पर आपत्ति भी दर्ज की जाती है। वर्ष 2013 में श्रीलंका की ओर से रखे 'महासेन' नाम को लेकर श्रीलंका मे कुछ वर्गो और अधिकारियों ने विरोध जताया था, जिसे बाद में बदलकर 'वियारु' कर दिया गया। उनके मुताबिक राजा महासेन श्रीलंका में शांति और समृद्धि लाए थे, इसलिए आपदा का नाम उनके नाम पर रखना गलत है।
भारतीय मौसम विभाग आम जनता से भी तूफानो के नाम सुझाने को कहता है, इस संबंध में निर्धारित बुनियादी मानकों के अनुसार बस यह ध्यान रखना चाहिए कि नाम छोटा हो, उससे किसी की सासंकृतिक भावनाए आहत नही हो।
हम सब की दुआ होगी कि अगला तूफान कभी नहीं आए लेकिन कड़वा और नंगा सच यह है कि अगली बार इस इलाके में चक्रवात के नामकरण की बारी पाकिस्तान की होगी। इस आपदा को 'नीलोफ़र' कहा जाएगा। पिछली बार पाकिस्तान ने नवंबर 2012 में जिस चक्रवात का नाम रखा था उसे 'नीलम' कहते हैं।

Sunday 12 October 2014


अधिकारी कैसे कैसे,,,,,,,,,,,,,,,,?

मित्रो मैंने अनेको अधिकारी के साथ काम किया है। जिनमे आई ए ,,एस राज्य प्रशासनिक सेवा तथा अन्य सोर्से से आये लोग रहे है। इन सब के साथ काम करते करते आज पर्यन्त ईमानदारी क्या और कैसे होता है समझ नही पाया ?
मै रायगढ़ जिले में पदस्थ था। हर माह में एक बार समयसीमा की बैठक होती थी। अचानक ही कलेक्टर ने एक राजस्व अनुविभागीय को बोला मिस्टर ,,,,,,,तुम एक बोर्ड बनवाओ। राजस्व अधिकारी ने कलेक्टर को खुश करने तुरंत बोला। आज ही बनवा लेता हु सर ,उसमे लिखाना क्या है। कलेक्टर ने कहा तुम्हारे रेट लिस्ट। अब उस अनुविभागीय अधि , की झेंपने की पारी थी। सारे अधिकारी जो मीटिंग में मौजूद थे हंसने लगे।
तब मेरे सामने यह राज खुला की वो अपने चेम्बर में आते ही क्यों ऐसा कहते थे की लक्ष्मीनारायण की फाइल मेरे सामने रख दो ,शेष बाद में देखेंगे। और ऐसा वो रोज़ ही कहते थे। इस लिए किसी ने उनकी शिकायत कर दी थी। की जिस फाइल में लक्ष्मी नारायण को बैठाया
 को  जाता है ,वे सिर्फ उसी फाइल को छूते है। बाकि फाइल एक किनारे रख सिर्फ पेशी दे दी जाती है।लक्ष्मीनारायण के आशय तो आप समझ ही गए होंगे। 


Friday 3 October 2014

भारत में गन्दगी सभी तरफ एक समान
,इसी लिए मेरा भारत महान
पान गुटखा  खाकर थूकना ,हमारा अधिकार ,
रेलवे लाइन में शौच जाने में नही पा सकता, कोई हमसे पार
घर का कचरा साफ ,गली ,चौराहे को गन्दा करना
 है ये हमारा जन्म सिध्द  अधिकार
स्वानुशासन  व् स्वप्रवित्ती  से ही होगा बेड़ापार
आओ भैय्या करे सफाई,तभी होगा देश का कल्याण
और हम ही नही ,पूरा विश्व कहेगा
महान है रे  महान,तेरा भारत देश  महान।।
* devendra kumar sharma *

एक दिन के 25 ,50 कदम के रस्म अदायगी सफाई से कुछ भी नही होगा पुरे भारत के लोग स्व- अनुशासन  ,और स्व इच्छा से काम करे ,तब भारत घर व् बाहर साफ हो पायेगा। इसके लिए कड़े परिश्रम  
की आवश्यकता है तभी जागरूकता आ पायेगी।