अनअप्रोचेबल होना बड़प्पन की एवं प्रभावशाली होने की निशानी है ?
पूर्वकाल में कुछ ऐसे अधिकारी भी होते थे जो पुजारी के मोल्ड में फिट ही नहीं होते थे परंतु बड़ा साहब होने के कारण ऐरे-गैरे नत्थू-खैरे से मिलना या फोन पर बात करना पसंद नहीं करते थे। टेलीफोन करने पर या मिलने का प्रयत्न करने पर वे पूजागृह के बजाय बाथरूम मे, मीटिंग में या दौरे पर पाए जाते थे।अन्य प्रशासकीय दिनचर्या में भी पूजा अनेकों अवसरों पर बडा़ कारगर हथियार साबित होती है - 'साहब पूजा कर रहे हैं।'
पर जब से जमाना हाई-टेक हो गया है, साहब लोगों ने भी हाई-टेक तरीकों को अपना लिया है। अब किसी अधिकारी को फोन करने पर चपरासी या स्टेनो-बाबू से एक ही जवाब मिलता है, 'सर, साहब अभी हैं नहीं।'
'कहाँ गए हैं?'
'पता नहीं, पर आप अपना नाम व टेलीफोन नम्बर बता दीजिए। आने पर बात करा दूँगा।'
अब अगर आप उन साहब के मतलब की चीज हैं तब तो पाँच मिनट में ही आप को उनका फोन आ जाएगा क्योंकि साहब पहले से वहीं उपस्थित होते हैं, नहीं तो आप उनके फोन का इंतजा़र करते-करते सूख जाएँगे क्योंकि दूसरी-तीसरी बार आप द्वारा फोन करने पर भी वही जवाब मिलेगा।
और क्यों ऐसे-वैसों से मिलें हमारे साहब लोग, जब हमारी प्रशासकीय मान्यताओं के अनुसार अनअप्रोचेबल होना बड़प्पन की एवं प्रभावशाली होने की निशानी है
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