पहले गाव बाजार में छोटे सिनेमा सर्कस आते और वही मनोरंजन के मुख्य साधन होते थे ।
एक सर्कस अपने सामान को बैलगाड़ियो में लादकर उसी बाजार में अपने करतब दिखाने आया हुआ था। सर्कस मे करतब दिखाने वालो मे कुछ जानवर भी थे . शेर को पिंजरे में बंद कर एक बैलगाड़ी के ऊपर रखा गया था। इसी तरह अन्य जानवर भी पिंजरे में बंद होकर अलग अलग रखे गए थे।
उस सर्कस में भालू के करतब भी शामिल था, जिसके नाक को नाथ कर रस्सी में बांधकर शेर के पिंजरे के नीचे ही बांध दिया गया था।
सर्कस के कर्मचारी टेंट गाड़ने व् अन्य व्यवस्था करने में लगे हुये थे।बाजार घुमने आये लोग विशेष कर महिलाये व् ,बच्चो को इन्हे देखने में काफी आनंद भी आ रहा था। वे इनके पिंजरे को घेर कर खड़े थे।
दोपहर दो ,तीन बजे का समय था , बाजार पुरे शबाब पर था।
इधर सर्कस के शेर को शायद भरपूर खाना प्राप्त नही हुआ था। अपने पिंजरे में आगे पीछे हो हो कर गुर्राते घूम रहा था। और थकहार कुछ देर बाद वो वही बैठ गया।
इधर भालू धुप की गर्मी से हलाकान हो कभी पेड़ की छाया की ओर में तो कभी गाड़ी के नीचे शेर के पिंजरे के नीचे घुस कर घूम रहा था।
इधर शेर जब बैठा तो उसकी पूछ पिंजरे के नीचे लटकने लगी। और वो आँखे बंद कर सोने की मुद्रा में चुपचाप शांत था।
तभी भालू का क्या मूड हुआ तो उसने सामने की पैर उठा कर शेर की पूछ को हल्का सा मारकर हिला दिया। शेर ने कोई प्रतिक्रिया नही की। अब तीन चार बार ऐसा करने और शेर के शांत रहने से भालू का हौसला बढ़ गया, उसने फिर शेर की लटकती पूछ को फिर मार कर हिला दिया। इस तरह उसने चार पांच बार की।
कुछ देर के बाद उसने फिर जोरो से शेर की पूछ को नीचे के तरफ खीच दिया ,शायद अबकी बार भालू के पैर के लम्बे नाख़ून शेर के पूछ मे गड गया ,शेर जोर से खड़े होकर दहाड़ने लगा। शेर के ट्रेनर ने पास आकर देखा क्या हुआ ,लेकिन उसे कुछ भी समझ में नही आने पर दुसरे काम में लग गया।
कुछ देर के बाद भालू फिर शेर को खिजाने और ,पूछ खीचने में लग गया. अब शायद शेर के सब्र की सीमा बर्दास्त से बाहर हो गई थी। शेर ने जोर के साथ दहाड़ कर पिंजरे को पंजा मारा ,और पता नही क्या हुआ जो पिंजरे का दरवाज़ा धड से खुल गया .अब क्या था वो गुस्से में कूद कर दहाड़ते हुए भालू के तरफ लपका।
इधर जैसे ही शेर पिंजरे से बाहर निकल आया ,जो लोग पास में खड़े थे वो डरकर शेर निकला भागो रे भागो का हल्ला करते हुये भागने लगे।
इधर पुरे बाजार में शेर आ गया है सर्कस से छूट गया है भागो भागो सुनकर लोगो मे दहशत से भगदढ़ मच गया। लोग अपने सामान जिस भी हालत मे थी छोड़ छोड़ कर सुरक्षित जगह की तलाश में इधर उधर भागने लगे। समीप ही स्कूल के कमरो में लोग छिपने लगे व नज़दीक मे तालाब के ऊपर पार में काफी पेड़ लगे थे, उसके ऊपर चढ़ने लग गए।
शेर इधर सीधे भालू के पास गुस्से मे पहुच कर उसकी गर्दन में अपनी दात गड़ा दिया।
भगदड़ से और इस आकस्मिक हुयी घटना से सर्कस के कर्मचारी लोग भी घबरा गए ,पुरे बाजार में कर्फ्यु सा लग गया था। लोग समीप के मंदिर के छत तक में जैसे तैसे चढ़ गए थे। पक्के दुकानों के शटर तक गिरा दिए गए थे .सर्कस वाले भी अकेले पड़ गए उन्हें भी समझ नही आ रहा था की स्थिति को कैसे नियंत्रण मे लाया जावे। एकाएक ट्रेनर को क्या सुझा तो उसने एक लम्बे चौड़े नायलोन के जाल सर्कस के बक्से से निक़ाल कर इन जानवर पर फेक कर ढक दिया। ताकि वे भागने न पाये व इन्हे अलग करने की कोशिस में लग गए।
किन्तु शेर का दांत भालू की गर्दन में बुरी तरह से गड़ा हुआ था जिसे वे खीच नही पा रहे थे।
कुछ ग्रामवासी जिसमे की समीपस्थ ग्राम कुवागोंदी ,आदि के गाव वाले भी अपने सामान बेचने आये हुए थे .जो की वही समीपस्थ बरगद के पेड़ के ऊपर चढ़े थे ,में से एक ने चिल्ला कर बोला की शेर के मुह में सब्बल डाल कर फैला कर खोलो ,तभी वो छोड़ेगा।
सर्कस के लोगो को कुछ समझ नही आया तो उसे नज़दीक बुलाया .तब तक स्थानीय आधिकारी और पुलिस भी स्थिति को देखते हुए अपने बन्दुक लेकर आ गए थे।
उन्होंने बोला शेर को गोली मारनी होगी ,ताकि वो आम जनता को नुकसान न पहुचाये। मरता क्या न करता ,सर्कस के लोग समीप पड़े दो सब्बल को जाल के अंदर डाल शेर के मुह के अन्दर घुसेड ही रहे थे की शेर ने भालू को घबरा कर छोड़ दिया।
फिर उसके ट्रेनर ने शेर को फिर जैस तैसे पिंजरे में लाकर बंद कर दिया। व भालू को अलग जगह मे ले जाकर बांध दिया गया। अब बाजार में लोग फिर वापस आने लगे।
इधर वो आदमी जिसने शेर के मुह में भालू को छुड़ाने के लिए सब्बल लगाने की सलाह दी थी को सर्कस वालो ने इनाम दिया। और पूछा उसे ऐसे आईडिया कहा से आया।
उसने बताया की उसका गाॅव जंगल से घिरा हुआ है ,व् गाहे बगाहे जानवर रात को भी गाव में चले आ जाते है। उनके पालतू जानवर रखने के बाड़े चुकि बाहर की और होता है में किसी न किसी को सोना पड़ता है। और ये काम उसका बड़ा भाई जिसे कुछ कम दीखता है ,व हकलाता है ,के जिम्मे पड़ता है। समीप ही एक दीवार की औट में उसका बाप भी भरमार बन्दुक लेकर सोता है।
एक दिन रात मे अचानक उनके पालतू जानवरो के रखे जाने वाले बाड़े में भगदड़ सी मच गई थी। बड़ा भाई को अँधेरे में कुछ सूझ नही रहा था ,उसने लैंप जलाई ,व् जानवरो को आवाज़ लगाई ,जानवर उसकी आवाज़ सुन कर धीरे -धीरे शांत होने लगे। उसने पास ही अलाव भी जला दिया ताकि कोई जंगली जानवर आस पास हो तो भाग जाये।
तभी उसने दिवार के पास खड़े किसी जानवर को देखा ,उसे लगा की ये बछड़ा है , जो छुट गया है उसे ऐसे भी km दीखता था। .और वह उसने रस्सी लेकर उसे बांधने उसके पास तक चला गया।
तभी वो जानवर दहाड़ते हुए उसके ओर लपका मेरा बड़ा भाई घबड़ा कर बाघ बाघ की आवाज़ निकालने लगा ,किन्तु हकलाहट में वह बाप बाप जैसे सुनाई दे रहा था।
इधऱ एक दिवार की आड़ में सोये उसका बाप भी जग गया ,व पूछा की क्या हुआ ,और तभी माज़रा समझ वो भी जोर जोर से चिल्लाने लगा. ! आसपास के रहनेवाले लोग भी लाठी बल्लम व् अन्य हथियार के सहित इकठ्ठे हो गए। और उस बाघ को खदेरने लगे। शेर बुढा और मरियल था ! उसने घबरा कर भागने की कोशिस की लेकिन मेरा बड़ा भाई जिसकी आँखे कमज़ोर थी। शेर के सामने आ गया ,और शेर ने उसे गिरा कर पीठ पर सवार हो अपने दांत को गड़ा दिया। गाव वालो ने लाठी मारना चालू कर दिया ,और शेर भी मार से बेदम हो बेहोश हो गया ,अब लोगो ने शेर को उस पर से उठाने की कोशिस की. लेकिन शेर का मुह नही खुल पा रहा था। तब मैंने सोचा की इसके मुह मे सब्बल को डाल कर मुह को खोला जावे फिर पास पड़े सब्बल को शेर के मुह में डाल ऊपर की और उसे उठा कर शेर के मुह से अलग कर अपने घायल भाई को मुक्त कराया।
फिर शेर को रस्सी से बांध कर और भाई को चारपाई पर लिटाकर अस्पताल ले जाया गया। रास्ते मे देखने वालो की भीड़ लगी थी ,और भाई के बाजू मे सब्बल लेकर ग्रामीणों ने मुझे भी खड़े किया था। और उस दिन भी मुझे मेरे इस काम के लिए इनाम दिया गया था । और समाचार पत्र मे हमारे चित्र भी छापे गए थे ।