तबाही बरपाने वाले समुद्री तूफानों का भी होता है विधिवत नामकरण
देवेंद्रकुमारशर्मा
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बरबादी और तबाही लाने वाले समुद्री चक्रवाती तूफानों का भी 'विधिवत नामकरण' किया जाता है और इसके लिए एक पूरी प्रक्रिया अपनाई जाती है, इनका नामकरण क्रमानुसार तूफान आने से काफी पहले कर लिया जाता है और इसी क्रम के अनुसार इनका नामकरण किया जाता है। भारतीय मौसम विभाग द्वारा अत्यंत भीषण तूफान वाली श्रेणी मे दर्ज 'हुदहुद चक्रवात' का नाम इसी वर्णक्रम मानक के अनुसार ओमान ने रखा हैं।
देश के समूचे पूर्वी तट को घेरे, बंगाल की खाड़ी में उत्तरी अंडमान के पास उठे 'हुदहुद' चक्रवाती तूफान की 190 किलो मीटर की रफतार वाली तूफानी हवाएं रविवार को भीषण तबाही वाली वर्षा के साथ आंध्रप्रदेश और ओडिशा तटों पर बरबादी बरपाने के साथ जैसे सब कुछ तहस-नहस करने पर आमादा हो, तबाही के इस तांडव का रौद्र रूप कुछ धीमा जरूर पड़ेगा लेकिन फिर भी तेलंगाना, पश्चिमी बंगाल, बिहार के बाद यह पूर्वी मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, झारखंड पूर्वी उत्तरप्रदेश को भी अपनी चपेट मे लेगा.. लाखों लोगों को सुरक्षित स्थलों पर पहुंचाया गया है।
केंद्र व संबद्ध राज्य सरकारों द्वारा उठाए जा रहे एहतियाती बचाव व राहत कार्यों के बावजूद पूरा प्रशासन व जनता सांस रोके कम से कम तबाही की दुआ मना रही है, 'हुदहुद' दरअसल अरबी भाषा में 'हूपु' नाम की चिड़िया को कहा जाता है, जिसकी प्रजाति काफी कुछ कठ्फोड़वा पक्षी से मिलती जुलती है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार 1900 के मध्य में समुद्री चक्रवाती तूफान का नामकरण करने की शुरुआत हुई ताकि इससे होने वाले खतरे के बारे में लोगों को जल्द से जल्द सतर्क किया जा सके, संदेश आसानी से लोगों तक पहुंचाया जा सके सरकार और लोग इसे लेकर बेहतर प्रबंधन और तैयारियां कर सकें, लेकिन तब नामकरण की प्रक्रिया व्यवस्थित नही थी।
विशेषज्ञों के अनुसार नामकरण की विधिवत प्रक्रिया बन जाने के बाद से यह ध्यान रखा जाता है कि चक्रवाती तूफानों का नाम आसान और याद रखने लायक होना चाहिए इससे स्थानीय लोगों को सतर्क करने, जागरूकता फैलाने में मदद मिलती है और मीडिया में इस का जिक्र करने से आसानी होती है।
इनके आसान नाम से इसे याद रखने में आसानी होती है। इसी संदर्भ में बता दे कि नर्गिस, लैला, कैटरीना, नीलम, फैलीन, हेलन, नीलोफर यह सब किसी महिला का नहीं बल्कि पिछले वर्षो में दुनियाभर में आए समुद्री तूफानों का नाम है।
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार तूफानों और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नाम 1953 से मायामी नेशनल हरीकेन सेंटर और संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसी वर्ल्ड मेटीरियोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (डब्लूएमओ) नाम रखता आ रहा है, लेकिन उन दिनों में उत्तरी हिंद महासागर में उठने वाले चक्रवातों का कोई नाम नहीं रखा गया था क्योंकि विशेषज्ञों का मानना था कि इस क्षेत्र में विशेष तौर पर ऐसा करना काफी विवादास्पद था, इस काम में काफी सतकर्ता की जरूरत है।
सांस्कृतिक विविधता वाले इस क्षेत्र में नामकरण करते वक्त काफी सावधान और निष्पक्ष रहने की ज़रूरत थी ताकि यह लोगों की भावनाओं को ठेस न पहुंचाए। मगर 2004 में डब्लूएमओ की अगुवाई वाली अंतरराष्ट्रीय पैनल भंग कर दी गई और अपने-अपने क्षेत्र में आने वाले चक्रवात का नाम खुद रखने को कहा गया। इसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, श्रीलंका और थाईलैंड को मिलाकर कुल आठ देशों ने हिस्सा लिया।
इन देशों ने 64 नामों की एक सूची तैयार की है। हर देश ने आने वाले चक्रवात के लिए आठ नाम सुझाए। यह सूची हर देश के वर्ण क्रम के अनुसार है। इस क्षेत्र में आने वाला आखिरी चक्रवात जून में आने वाला 'नानुक' था, जिसका नाम म्यांमार ने रखा था।
सदस्य देशों के लोग भी नाम सुझा सकते हैं। मसलन भारत सरकार इस शर्त पर लोगों की सलाह मांगती है कि नाम छोटे, समझ आने लायक, सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और भड़काऊ न हों। वर्णक्रम के अनुसार इस बार चक्रवाती तूफान के नामकरण की बारी ओमान की थी। लंबी सूची पिछले साल भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर आए फैलीन चक्रवात का नाम थाईलैंड ने रखा था।
इस सूची में शामिल भारतीय नाम काफी आम हैं, जैसे मेघ, सागर, और वायु। पाकिस्तान की तरफ से मंजूर नामों में फानूस, नर्गिस, श्रीलंका के तरफ से माला, प्रिया, रश्मि व बांग्लादेश की तरफ से अग्नि, निशा वगैरह शामिल है।
'हुदहुद' संभवतः इस सूची का 34वां नाम है। इसका मतलब है कि अभी इस सूची में 30 नाम और हैं। चक्रवात विशेषज्ञों का पैनल हर साल मिलता है और जरूरत पड़ने पर सूची फिर से भरी जाती है।
1900 के प्रारंभ में ऐसे तूफानों के नाम महिलाओं के नाम पर रखे जाते थे। यह जानना दिलचस्प होगा कि उसके बाद भी हाल के वर्षो मे नर्गिस, लैला, कैटरीना, नीलम, फैलीन, हेलन, नीलोफर यह सब किसी महिला का नहीं बल्कि पिछले वर्षों में दुनियाभर में आए समुद्री तूफानों का नाम है।
1950 के मध्य मे नामकरण के क्रम को और भी सिलसिलेवार ढंग से करने उद्देश्य से विशेषज्ञों ने इसकी बेहतर पहचान के लिए इनके नामों को पहले से क्रमबद्ध तरीके से अंग्रेजी वर्णमाला के शब्दों के प्रयोग पर जोर दिया। इसी के तहत 1990 के शुरुआत में पहले इन का नाम 'ए' से 'एन्ने' रख गया।
ऐसा भी हुआ कि 1990 के दशक से पहले दक्षिणी गोलार्ध में आए सारे तूफानों का नाम पुरुषों के नाम पर रखा जाने लगा था लेकिन बाद में नैशनल हरिकेन सेंटर के द्वारा उष्ण कटिबंधीय तूफानों का नामकरण किया जाने लगा। इन तूफानों का नामकरण अब इंटरनेशनल कमिटी ऑफ मेटेरोलॉजिकल आर्गेनाइजेशन के हाथों में है।
यह एक रोचक बात है कि उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में आए तूफानों का नामकरण ना ही किसी खास इंसान के नाम पर की गई और ना ही अंग्रेजी वर्णमाला के शब्दों की किसी सूची से हुई बल्कि इन जगहों पर लोगों के द्वारा नाम और क्षेत्रों की परिचित चीजों पर आधार पर किया गया।
अत: उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में चक्रवाती या तूफानों का नामकरण केवल इस बात को ध्यान में रखकर किया जाता है ताकि इसके प्रति लोगों तक अधिक से अधिक और ज्यादा जागरुकता, सतकर्ता, फैलाई जा सके ताकि सरकार और लोग इसे लेकर बेहतर प्रबंधन और तैयारियां कर सकें।
उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में चक्र्वाती तूफानों के नामकरण उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में इन का नामकरण क्षेत्रीय स्तर के आधार पर किया जाता है। उदाहरण के लिए हरिकेन कमिटी ने पहले से ही हरिकेन के नामों की लिस्ट तैयार कर ली है।
उत्तरी अटलांटिक सागर के आसपास के क्षेत्रों में नामों की छ: सूची तैयार की गई है, जिसे प्रत्येक 8 सालों पर दोहराया जाता है। पूर्वी उत्तरी प्रशांत महासागर के तटों पर आने वाले हरिकेनों के नामों की यह सूची प्रत्येक छ: सालों में दोहराई जाती है।
कई बार इन के नामों को लेकर स्थानीय स्तर पर आपत्ति भी दर्ज की जाती है। वर्ष 2013 में श्रीलंका की ओर से रखे 'महासेन' नाम को लेकर श्रीलंका मे कुछ वर्गो और अधिकारियों ने विरोध जताया था, जिसे बाद में बदलकर 'वियारु' कर दिया गया। उनके मुताबिक राजा महासेन श्रीलंका में शांति और समृद्धि लाए थे, इसलिए आपदा का नाम उनके नाम पर रखना गलत है।
भारतीय मौसम विभाग आम जनता से भी तूफानो के नाम सुझाने को कहता है, इस संबंध में निर्धारित बुनियादी मानकों के अनुसार बस यह ध्यान रखना चाहिए कि नाम छोटा हो, उससे किसी की सासंकृतिक भावनाए आहत नही हो।
हम सब की दुआ होगी कि अगला तूफान कभी नहीं आए लेकिन कड़वा और नंगा सच यह है कि अगली बार इस इलाके में चक्रवात के नामकरण की बारी पाकिस्तान की होगी। इस आपदा को 'नीलोफ़र' कहा जाएगा। पिछली बार पाकिस्तान ने नवंबर 2012 में जिस चक्रवात का नाम रखा था उसे 'नीलम' कहते हैं।

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