जादू -टोना करने वालो की भूमि जब छत्तीसगढ़ को समझा जाता था - (land of witches ) (कमज़ोर दिल वाले इसे न पढ़े )
जन साधारण में टोनही या डायन का अंधविश्वास
लोग माने या नही माने किन्तु यह सत्य ही है की अंधविश्वास के चलते टोनही ,डायन या प्रेतीन , का नाम आज भी छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में भय पैदा कर देने के लिए पर्याप्त है। सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र ही नहीं शहरी इलाकों में भी टोना-टोटका को लेकर आम लोगों के मन में संशय बना रहता है। इस कथित काला जादू को लेकर टोना टोटका और टोनही जैसे संवेदनशील मुद्दे आज भी छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों मे अपना प्रभाव रखती है। और इससे बचने के उपाय आम जन आज भी करते ही रहते है।
मेरे इस लेख को प्रकाशित करने का उद्देश्य अंधविश्वास फैलाना नही है ,और न ही इसके प्रमाणिकता के लिए मेरे पास कोई प्रमाण ही है। इसे आप वास्तविक भी न ही माने।मैंने सिर्फ बचपन से आज तक लोगो से सुनी हुयी बाते ,और लोगो से हुयी चर्चा और census of india १९६१ में श्री के . सी दुबे ,और उनकी टीम जिन्होंने बालोद जिले (तब दुर्ग ) में गुंडरदेही के ग्राम कोसा का सर्वे किया था ,में लिए गए तथ्य जो की पुस्तक में लिखा गया है ही इसका आधार है। लेकिन आज के सन्दर्भ में भी ये मान्य तथ्य नही है। सिर्फ मनोरंजन के लिए ही मेरे द्वारा लिखा गया है जो की सिर्फ सुनी सुनाई ही बातो पर है।
पर भूतप्रेत का अस्तित्व साधु संतो, धार्मिक आध्यात्मिक उल्लेखों और परामनोविज्ञान की शोध और निष्कर्षों में भी उनके अस्तित्व के कई प्रमाण मिलते हैं। फिलहाल इतना ही कहा जा सकता है कि मृत्यु के बाद जीवन का कोई भी अस्तित्व रहता हो या नहीं। लेकिन इतना तो कहा जा सकता है कि भूतप्रेत कितने भी ताकतवार हों, वह मनुष्य का कोई अहित नहीं कर सकते। खैर छोड़िये इस बात को आगे
पुस्तक के अनुसार हेविट ने १८६९ में छत्तीसगढ़ के बारे में अपने रिपोर्ट में लिख कर प्रकाशित किया था , की छत्तीसगढ़ को बाहर के लोग चुड़ैलों की भूमि (land of witches ) समझते है। और उनकी धारणा 2nd वर्ल्ड वॉर ख़त्म होने के बाद भी छत्तीसगढ़ के आर्थिक विकास होने के बावजूद भी कायम थे। देश की आज़ादी के बाद नए कल कारखाने खुलने लोगो के रोज़गार के लिए शहर की और पलायन होने से और उनका शहरीकरण होने से इस कलंक से धीरे धीरे मुक्ति मिलने लगी। और यह कलंक अंदरुनी ,और पहुंच विहीन गाव तक सिमित हो गए। जो की अभी भी कायम है.
छत्तीसगढ़ में ये विचेस मर्द है तो टोन्हा और औरत हो तो टोनहिन कहलाने लगे। यह शब्द टोना मतलब काला जादू से लिया गया है।
श्री के सी दुबे तत्कालीन डेपुटी सुप्रिन्टेण्डेन्ट सेन्सस ऑफ़ इंडिया के अनुसार उन्होंने सुना था की बिन्द्रानवागढ़ के गांव देबनाई का नागा गोंड का उदाहरण दिया है जो की ( टाइगर ) शेर के रूप में आकर 08 लोगो को नुकसान पंहुचा चूका है। और जिसे वर्ष 38 या 39 में ब्रिटिश शासन ने गिरफ्तार किया था। जादू टोना का गहन जानकार था। और वेश बदलने में माहिर था। और इस बात की प्रमाण तत्कालीन रिकॉर्ड में दर्ज़ भी है।
श्री जी जगत्पति तत्कालीन जॉइंट सेक्रेटरी गृह मंत्रालय भारत शासन ने भी २७/७/1966 को लिखा था की भिलाई स्टील प्लांट जैसे आधुनिक तीर्थ से 15 मील के भीतर के गावो तक में लोग बुरी आत्माओ की उपस्थिति को आज भी लोग मानते है। तो न जाने पहुच विहीन छेत्रो में क्या हाल होगा। इसके निजात दिलाने हमे प्रयास की आवश्यकता है। ( उन्होंने यह बात दुर्ग के समीपस्थ गाव कोसा के सम्पूर्ण विलेज सर्वे करने के बाद उसके आधार से लिखा था) यह पुस्तक मेरे पास जबकि मै गुंडरदेही विकासखण्ड में वर्ष 89 -90 में विकास खंड अधिकारी के पद में था तब उपलब्ध होने पर उसके ही आधार से सम्बंधित गाव के लोगो से ही बात करने का नतीजा है।
जादूटोने का प्रशिक्षण (traning in witch craft )-
कहा जाता है की ये टोना जानने वाले मरने से पहले किसी न किसी अन्य युवा आदमी या औरत को ट्रेनिंग देकर अपनी विद्या सीखा जाते है।ऐसा भी विश्वास किया जाता है की ये टोनहिन कुछ अशरीरी शक्तियों को अपने कंट्रोल में रखते है। जैसे की वीर मसान जो को जमीन में गड़े हुए मुर्दो को अपने वश में किये जाते है। और यह इनके ट्रेनिंग का हिस्सा है।नौसिखिए को नग्न ही उनके ट्रेनर 21 रात्रि को ताज़ा गड़े मुर्दो की कब्र और शमशान घाट की परिक्रमा करने भेजते है। वे स्वयं छुपे हुए इनपर नज़र रखते है। जब इनकी आदत बन जाती है और ये भयभीत होकर भाग खड़े नही हुए तथा प्रमाणित कर दिए की वे ऐसी जगह में अकेले जाने में सक्छम है तो इनसे भूत प्रेत का आह्वान कराया जाता है। साथ ही इन्हे मंत्रसाधित पीली हल्दी से सनी चावल भी दी जाती है ,जिसके फेकने से बुरी शक्तिया इनसे दूर रहती है।फिर इनके ट्रेनिंग का दूसरा पार्ट जिसमे एक जाति विशेष के कुंवारे मृत व्यक्ती की खोपड़ी में चावल पका कर खाना है। ताकि वह उसके लिए वीर मसान बन सके। इस पूरी ट्रेनिंग के दौरान वे पूर्णतः नग्न रहते है। सूत के एक धागा भी धारण नही करते है। और इस कंडीशन में जब वे घर से बाहर निकलते है। तो पुरे घर के सभी सदस्य को कुछ नशीली पदार्थ खिला पिला जाते है ताकि वे सोये ही रहे और उनका राज़ राज़ ही रहे कोई दीगर न जाने। क्युकी ये घर से ही नग्न निकलते है और वैसे ही वापस आते है। मतलब की यह भी माना जाता है है कि टोनही आधी रात को निर्वस्त्र होकर अपने घर से मात्र एक दिया लेकर श्मशान घाट की ओर पैदल चली जाती है।। और वहां उसके जैसे ही अनेक महिलाये मिलकरतंत्र साधना करती है। जनश्रुतियों के मुताबिक देर रात घर से दूर श्मशान में पहुचने के बाद मल का दीपक बनाती है। उस दिए में बाती लगाकर मुत्र व तेल भरकर बिना माचिस के ही प्राकृतिक तरीके से आग जला देती है। छत्तीसगढ़ की ज्यादातर लोक कथाओं में टोनही के बाल खोल कर झूमने - झूपने का वर्णन मिलता है। कुछ लोगो के कथनानुसार टोनही को पीपल ,डुमर आदि के के पेड़ के नीचे बैठकर अमावस्या की रात 12 बजे से बाल खोलकर सर हिला-हिला कर तंत्र साधना करते हुए भी बताया जाता है।माना जाता है कि इस तंत्रसाधना के दौरान उसके भीतर पृथ्वी की तमाम बुरी शक्तियों का प्रभाव आ जाता है। तांत्रिकों का भी दावा हैं की इस साधना के दौरान उसे कोई भी प्रभावित नहीं कर सकता। तंत्र मंत्र के जानकार बताते है कि काला जादू की शक्ति इतनी प्रभावशाली होती है कि टोनही आसपास मौजूद किसी भी को महसूस कर लेती है। ऐसा भी कहा जाता है कि टोनही को साधना करते हुए अगर किसी व्यक्ति ने देख लिया तो उसकी मौत हो जाती है। या गंभीर रूप से बीमार हो जाता है। स्वाभाविक है इस तरह के दृश्य देख कर कमज़ोर दिल वाले तो सदमे से ही मर जावेंगे ,थोड़ा मज़बूत होगा तो भी भय से बीमार हो ही जायेगा।
हरेली त्योहार
आम धारणा हैं की आषाढ़ माह की अमावस्या को हरेली त्योहार के दिन टोनही की तंत्र साधना होती है। इस दिन को छत्तीसगढ़ प्रदेश में हरेली त्योहार के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। और स्थानीय लोग उस दिन जादू टोना की भय से यात्रा करना पसंद नही करते है। या शाम के बाद घर से बहार निकलना पसंद नही करते।यह दिन बैगाओं से लेकर जादू टोना करने वालों के लिए सबसे अच्छा दिन माना जाता है ऐसे कहा जाता है क़ि ये उस समय दीखते नही सिर्फ इनकी मुह से गिरती लार जो की जलती हुई रहती है ही बाहर के लोगो को दीखता है। लोकमान्यता है की इस अवस्था में इन्हे देखने वाला मर भी सकता है। ये भटकटइया (.... ) के जड़ो को चबा चबा कर चूसते है। और इसमें फॉस्फोरस जैसे कुछ पदार्थ भी मिलाते है जो की हवा के संपर्क में आकर जलता है।कथाओ के मुताबिक टोनही की पहचान उसकी जीभ के नीचे जलने जैसी काले रंग के मौजूद निशान से होती है।
लेकिन मेरे एक मित्र के अनुसार कुछ औरतो में जो की एक प्रकार के नशे के आदि होते है ,के उस नशे के पदार्थ के कारण ही वे निशान होते है। और इसी जड़ी बूटी जो की लार के साथ इनके मुह से गिरती है वही अग्नि जैसी ज्योति भी पैदा करती है। जिसे भी दूर से रात के अँधेरे में देख लोग भयभीत हो जाते है। बैगाओं या जानकार की माने तो यह निशान उनके कुछ और जड़ी बूटी के तंत्र साधना के दौरान सेवन के कारण बनता है। टोना करने वाले अपने तेज नज़र व अंदर तक वेधति हुई आँखों (sharp penetrating eyes ) से भी पहचाने जा सकते है। लेकिन यह आवश्यक नही है।यह दिन बैगाओं से लेकर जादू टोना करने वालों के लिए सबसे अच्छा दिन माना जाता है। तांत्रिकों का ये भी दावा हैं की इस साधना के दौरान उसे कोई भी प्रभावित नहीं कर सकता।
जन साधारण में टोनही या डायन का अंधविश्वास
लोग माने या नही माने किन्तु यह सत्य ही है की अंधविश्वास के चलते टोनही ,डायन या प्रेतीन , का नाम आज भी छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में भय पैदा कर देने के लिए पर्याप्त है। सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र ही नहीं शहरी इलाकों में भी टोना-टोटका को लेकर आम लोगों के मन में संशय बना रहता है। इस कथित काला जादू को लेकर टोना टोटका और टोनही जैसे संवेदनशील मुद्दे आज भी छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों मे अपना प्रभाव रखती है। और इससे बचने के उपाय आम जन आज भी करते ही नज़र आते है।
टोनही कौन बनती है और पहचान
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में लोगों की धारणा है कि आम लोगों की तरह गांव में रहने वाली ऐसी महिलाएं ही टोनही बनती हैं, जिनके बच्चे नहीं होते हैं।समाज से कटे होते है ,घर परिवार में उपेक्षित रहते है। कई लोग ऐसी महिलाओं को डायन के नाम से भी पुकारते हैं। अपना प्रदेश ही नहीं बिहार,झारखण्ड, ओड़ीसा और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में आज भी विधवा और अकेली उपेक्षित गरीब औरतें इसका दंश झेल रही हैं। हमारे ग्रामीण इलाकों में टोनही के बारे में मत है कि वे नदी किनारे चटिया-मटिया नाम के भूत को बुलाती है। इनके माध्यम से टोनही जिसे चाहे उसे अपने वश में कर सकती है और मर्जी के मुताबिक काम भी ले सकती है।
बचाव के रास्ते :-- हरेली के दिन ऐसी मान्यता है कि बैगा ,ओझा और तंत्र मंत्र के जानकारों द्वारा घर में सिद्ध नीम की टहनी बांध लेने से जादू टोने का प्रभाव घर में नहीं आता है। हरेली के दिन गांव में हर किसी के दरवाजे पर नीम की टहनियां लटकते हुए देखा जा सकता है। गाव के घरों की दीवारों पर गोबर से एक विशेष प्रकार का चिन्ह (चित्र ) बनाया जाता है। घर-आंगन को गाय के गोबर से लीपा जाता है। ताकि टोना का प्रभाव बेअसर हो जावे ।
namskar sir mai abhishek amin advocate raipur se hu sir mai vertman mai ll.m kar raha hu jaha mujhe tonhi prtarna ka vishay mila hai sir mai is vishay mai sodh karna chahta hu kya aap neri madad karenge or aapke dwara is lekh mai di gai baato ka upyog kar sakta hu. is vishay mai aap se milna chahta hu
ReplyDeleteTo internatiol jadugar Jo dikhate hai Kya aap kar sakte hai
ReplyDeleteDaynemo Jo karte hai Kya hai hath ki kala Jo sambhav nahi plz jwab dena