Saturday 16 January 2016

" एक दिन जंगल के नाम  "
 "जिसने तेंदुआ न देखा उसने क्या जंगल देखा "
 मैंने बालाघाट,कवर्धा ,मंडला जिले के बॉर्डर को जोड़ने वाली , कान्हा  के बफर ज़ोन सूपखार ,बीठली के  जंगलों की वर्ष  1982 से ८५ के मध्य  अपने राजनांदगांव की ब्लॉक बोडला ,बाद में कवर्धा के पोस्टिंग के दौरान अनेको बार भ्रमण किया।   जो  की कई प्रकार के पशुओं जैसे बाघ, तेंदुआ, ढोल (जंगली कुत्ते), गौर  (बाईसन), चीतल, सांभर, चोसिंघा, जंगली सूअर आदि को रहने एवं अपना भोजन ढूँढने के लिए सहायक हैं। दूधराज, मोर, सफ़ेद पेट वाला कटफोड़वा, भूरा कटफोड़वा, क्रेस्टेड सर्पंएंट ईगल, चेंजबल हॉक ईगल, वाइट रम्प  जैसे दुर्लभ पक्षी भी  सूपखार और आसपास  के घने जंगल में  बहुतायत से मिलते है। सूपखार में रुकने के लिए कई जंगल विभाग के विश्रामगृह  बने हुए है जो की तब वाइल्डलाइफ सफारी के लिए आने वाले मेहमानों को न सिर्फ ठहरने की अच्छी व्यस्था बल्कि अच्छे खाने  की सुविधा भी उपलब्ध करते हैं। और तब  कलेक्टर /कमिश्नर और अन्य उच्च पदस्थ अधिकारियो को  को ठहरने के लिए जंगल में एक अच्छी व्यस्था थी।  एक दिन हम वहां  के भ्रमण में परिवार के साथ अपनी बंद जीप में निकले / जँगल  प्रारम्भ होते ही   नदी के किनारे की ताज़ी हवा मिल जाने से हम लोग पहले की बड़े खुशी  महसूस कर रहे थे। चिल्फी  से निकलते समय मुहँ अँधेरे में ही ड्राईवर ने कुछ आवाज़ें सुनकर गाड़ी रोक दी  .देखा तो तेंदुआ  था। तेंदुआ, बेहद खूबसूरत जानवर होता है, उसकी ताकत और शान देखते ही बनती है। बाघ के विपरीत तेंदुए की चमड़ी पीलापन लिए हुए होती है और उस पर काले भूरे बेतरतीब रिंग्नुमा निशान होते है। तेंदुआ आमतौर पर छोटे जानवरों का शिकार करता है जैसे हिरन, जंगली सूअर के बच्चे, लंगूर। कहते है की  अपने शिकार को अन्य बड़े शिकारियों से बचाने के लिए तेंदुआ उसे पेड़ के शाखों के बीच छुपा देता है और वहीं बैठ कर आराम से खाता है। लेकिन मुझे ऐसे देखने का अवसर नही मिला।  एक बार शिकार करने के बाद कई दिनों तक वह उसी शिकार को खाता है और करीब ४-५ दिन बाद अगला शिकार करता है,  बेहद खूबसूरत जंगल के बीच हम लोग धीरे धीरे चल रहे थे की तभी दायीं तरफ से बांस की शाखों के चटखने की आवाज़े आई, हम उत्साहित होकर बांस के झुरमुट की तरफ देखने लगे, वहां एक हिरन का छोटा बच्चा था जो झाड़ियो  की पत्ती खा रहा था, हमे देख कर वो पीछे हट गया.  एकदम से बांस बांस के झुरमुट  में काफी हलचल शुरू हो गयी और ध्यान से देखने पर समझ में आया की यह तो  छोटे बड़े हिरणो  का एक पूरा झुण्ड है।  उन को देख लेने लेने के बाद हम फिर और जानवरो  की तलाश में निकल पड़े। तभी वह के पानी के तालाब के पास हमने  बंदरों का समूह देखा जो पानी पीने आया था, दुधमुहे छोटे बच्चे अपनी अपनी माँ से चिपके हुए थे और थोड़े युवा बच्चे एक दुसरे को पकड़ने के खेल में मस्त थे। पूरा समूह जोश से भरा हुआ उचल कूद कर रहा था। हमने ध्यान से देखा तो एक बन्दर एकदम ध्यान भरी मुद्रा में सबसे ऊँचे पेड़ पर बैठा सारे जंगल की निगरानी कर रहा था, वो सामान्य लग रहा था पर वो दूसरी दिशा में बड़े ध्यान से कुछ देख रहा था, हमने भी वहीँ रुकने का फैसला किया ताकी हम जंगल से आ रही आवाजें सुन सके और वह की मूवमेंट को समझ सके। कुछ ही मिनिट बीते होंगे के वो बन्दर बैचन होकर "ख़र्र खो खो" ऐसी आवाज़े निकलने लगा जिसका साफ़ मतलब था की वो अपने समूह को जंगले की तरफ से आते खतरे से सचेत कर रहा था, इसे अलार्म कॉल करते हैं। तभी २ और नर बन्दर ऊँचे पदों पर चढ़ गए और चिल्लाने लगे, पूरा समूह क्षण भर में पेड़ पर चढ़ गया और पीछे की तरफ भागने लगा, हम जंगल के इन पहरेदारों को ध्यान से देख रहे थे ताकि कुछ अनुमान लगा सके की वो जंगल के किस शिकारी पशु को देख कर घबरा रहे हैं। बंदरो की चीख पुकारों के साथ ही साथ कुछ सीटी बजने जैसी तीखी आवाज़े भी सुनाई देने लगी, अफसर को समझते देर न लगी की जंगली कुत्तो का एक झुण्ड शिकार की तलाश में हमारी तरफ आ रहा है। जंगली कुत्ते भी जंगल में कम ही दिखाई देते है। उस झुण्ड में ९ सदस्य थे, पूरा झुण्ड तालाब के पास आया और पानी पीने लगा। कुत्तों का झुण्ड १५ मिनिट तक पानी पीने के बाद वापस जंगल की तरफ लौट गया। हमने हमारी किस्मत को धन्यवाद दिया और आगे बढ़ गये। मेरे बर्ड के शौक के कारण रास्ते भर मैं पक्षी देखता हुआ चल रहा था। . मैंने रास्ते में कई सुन्दर पक्षियों से भेट हुआ।   उनमे सबसे अच्छा था  कटफोड़वा, ये पक्षी सिर्फ  भारत के जंगलो में ही पाये जाते है। कटफोड़वा एक पेड़ के तने में अपनी चोंच से कीड़ो को निकाल निकाल कर खा रहा था। विश्राम गृह  का  छेत्र सबसे खूबसूरत इलाका है, यहाँ कई जानवर  नदी में पानी पिने आये हुए थे और नदी किनारे की नरम घांस को चर रहे थे, इन जानवरों में गौर  का एक बड़ा झुंड, चीतल, सांभर के कई छोटे छोटे झुण्ड काफी आकर्षक लग रहे थे। हमने मन भर कर प्रकृति के इन खूबसूरत नजारों की  जी भर कर निहारा।  । किन्तु बाघ , तेंदुआ न देख पाने का दुख अब तक जा चुका था।  वापस जाते समय मैंने वही पास ही में एक दूधराज पक्षी देखा। अत्यंत दुर्लभ दूधराज सफ़ेद रंग का बुलबुल के आकार का पक्षी होता है जिसकी लम्बी सफ़ेद पूँछ होती है और हवा में उड़ते समय किसी रिबन की तरह लहराती है।  हम तैयार होकर वापस जंगल की तरफ निकल पड़े और जंगल की शांति को चीरती हुई ग्रे जंगल फाउल की कर्कश ध्वनि सुनते हुए धीरे धीरे आगे जाने लगे।  जीप  में हमारे साथ  २ युवक  और भी थे, उनमे से एक पहली ही बार जंगल आया था और अति उत्साहित था,  चलते चलते एक मोड़ मुड़ते ही वो चकित होकर पीछे की और देखकर "टाइगर टाइगर" चिल्लाने लगा। हम सब ने पीछे देखा तो एक बड़ा सा नर तेंदुआ झाड़ियों में अन्दर की तरफ जा रहा था।  हम कई मिनट तक उसे झाड़ियों के पीछे जाते हुए देखते रहे और आज क्या कमाल का दिन है यह सोचने लगे, आज सुबह से हम , ढोल, हिरन, सांभर, बाईसन ये सभी जंगल के प्रमुख जानवर देख चुके थे ।  २ बार लंगूरों और चीतल की अलार्म कॉल भी सुनी देखा  एक बड़ा नर तेंदुआ  रोड पर बिलकुल सड़क किनारे बैठा हुआ था। खूबी है तेंदुए की जो उसको घोस्ट ऑफ़ द जंगल बनाती है। तेंदुआ अपनी खाल के रंग और चुप कर बैठने के तरीके से पर्यवेश में इतना घुल मिल जाता है की पुराने वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट्स भी आसानी से उसे देख नहीं पाते। रस्ते में एक फारेस्ट गार्ड मिला, वो  साइकल  लेकर पैदल ही जंगल में गश्त लगा रहा था। इन्ही गार्ड्स की मेहनत, जंगल के ज्ञान और जोखिम लेने के कारण ही आज भी जंगल और उनमे रहने वाले जानवर बचे हुए है। ये गार्ड्स २ ४ घंटे जंगल में रहते हैं और शिकारियों और लकड़ी चुराने वाले बदमाशों को जंगल से खदेड़ते रहते हैं। गार्ड ने हमे बताया की अभी ५ मिनिट पहले नजदीक तालाब  की तरफ से चौसिंघा की अलार्म कॉल आ रही थी। चौसिंघा काफी छोटा हिरन प्रजाति का जानवर होता है और इसकी अलार्म कॉल सबसे पक्की होती है। हम गार्ड के बताये हुए इलाके की तरफ तेज़ी से चलने लगे। रस्ते में एक मादा भालू और उसके बच्चे ने हमारे सामने से सड़क पार की और जंगल में भाग गये। और शाम ढलने लगी थी।  अँधेरा होने लगा था और वापस लौटने का समय हो चला था। जंगल से बाहर की तरफ आते समय हमने चिल्फी  घाटी एरिया में देखा की एक जीप  सड़क के एक तरफ खड़ी थी और लोग  वह  पर खड़े होकर  खतरे की परवाह किये बगैर सामने  उची टीले पर कुछ देख रहे थे। हम भी उस तरफ जीप के भीतर से ही  देखने लगे। जब हमने वह देखा तो हमारे आश्चर्य की सीमा न रही, ऐसा लगा मानो हमारी इच्छा तेंदुए ने सुन ली थी और हमे दर्शन देने फिर  पहुच गया था, तभी एक ट्रक की आती आवाज़ ने उसे वह से भगा दिया  और हम  वापस अपने क़्वार्टर की तरफ लौट चले। वापस आने पर ऐसा लगा  मानो  इस एक दिन में सारे जंगल की सैर हो गयी 

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