हरेली छत्तीसगढ़ में त्योहारों के शंखनाद का दिन होता है। 


हरेली के दिन गेड़ी चढ़ी जाती है। आपको बता दे कि गेड़ी एक प्रकार का पारंपरिक खेल है जिसमें बच्चे और बड़े लंबे बांस की बनी गेड़ी पर चढ़कर पूरे गांव का चक्कर लगाते हैं। गेड़ी सामान्य मोटी लकड़ी के लट्ठी ,लंबे बांस पर बांस के टुकड़ों को दो फाड़ कर आड़ा बांधने पर बनती है।जिसे की बुच की रस्सी से बाँधा जाता है ,और जिसमे मिट्टी तेल डालने से चरर्र,, चु की आवाज़ निकलती है।
छत्तीसगढ़ राज्य के लिए हरियाली का त्यौहार बड़ा ही महत्वपूर्ण है।
एक तरह से कहा जाए तो हरेली छत्तीसगढ़ में त्योहारों के शंखनाद का दिन होता है। जिसके बाद एक के बाद एक कई त्योहार आते हैं। सावन के महीने में हरियाली की चादर आढ़े धरती का श्रृंगार देखते ही बनाता है।
करीब डेढ़ माह तक जीतोड़ मेहनत करते किसान लगभग बुआई और रोपाई का कार्य समाप्त होने के बाद अच्छी फसल की कामना लिये सावन के दूसरे पक्ष में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरेली का त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।
आज के ही दिन को मंत्र (काला जादू) सिद्ध करने का दिन माना जाता है, इससिए किसी की बुरी नजर न लगे इसलिए शहर हो या गांव हर घर के सामने शतावर (asparagus ) या नीम की पत्ती टांगी जाती है। क्युकी ये काफी दिन तक हरे रहते है इन्हे रोगनाशक भी माना जाता है।
गांव में कच्चे घर के सामने बुरी बला को टालने गोबर से अनेको आकृति बनाया जाता है। इसीलिए यहाँ के निवासी रात्रि को सामान्यतः घर से बाहर नही निकलते और न ही यात्रा आदि करते है।ताकि वे बुरी बला के प्रकोप से बच सके।
आज के ही दिन छत्तीसगढ़ में धान के पौधों का पुंसवन त्यौहार मनाया जाता है किसान खेतों में जाकर होम धूप लगाते हैं किसान खेती किसानी के काम में उपयोग में आने वाले उपकरण जैसे हल बखर , फावड़े, कुल्हाड़ी व् अन्य कृषि यन्त्र आदि को साफ धोकर उनकी पूजा करते हैं। साथ ही बैलों की पूजा ,दवाइयों आदि का लेप किया जाता है ,पशुओं के गोशाला को भी साफ और स्वच्छ कर उसमें नई मिट्टी या मूरूम डालकर और गोबर से लिपाई कर सुव्यवस्थित करते हैं।
ग्रामीण अंचलों में आज भी बड़े ही हर्षोल्लास के साथ हरेली का क्या बड़े, क्या बुढ़े सभी इस पर्व का आनंद उठाते हैं। इस पर्व में नारियल फेंक ,गेड़ी दौड़ ,भजन प्रतियोगिता का भी आयोजन कई जगह होते है।
हमारे छत्तीसगढ़ में आज के दिन गेड़ी चढ़ी जाती है। आपको बता दे कि गेड़ी एक प्रकार का पारंपरिक खेल है जिसमें बच्चे और बड़े लंबे बांस की बनी गेड़ी पर चढ़कर पूरे गांव का चक्कर लगाते हैं। गेड़ी सामान्य मोटी लकड़ी के लट्ठी ,लंबे बांस पर बांस के टुकड़ों को दो फाड़ कर आड़ा बांधने पर बनती है।जिसे की बुच की रस्सी से बाँधा जाता है ,और जिसमे मिट्टी तेल डालने से चरर्र,, चु की आवाज़ निकलती है। इस गेड़ी पर चढ़कर बच्चे चलते हैं और इस खेल में गेड़ी के माध्यम से पानी के छोटे गड्ढ़ों में से गुजरना अच्छा लगता है।जिस खिलाड़ी की जितनी अच्छी प्रेक्टिस होती है वह उतनी ही उची और बड़ी गेड़ी चढ़ता है।
यह त्यौहार लोगों को कहीं ना कहीं पर्यावरण के प्रति जागरुक होने का भी संदेश देता है। मान्यता है कि इस दिन व्यक्ति यदि एक नीम का पौधा अपने घर के आसपास लगाता है तो उसे कई गुना पुण्य मिलता है।
हरेली के हि दिन ज्यादातर ग्रमीण अंचलों में अपने कुल देवता और ग्राम देवता की पूजा की जाती है। छत्तीसगढ़ के शहरी क्षेत्र लोग भले ही हरेली का त्योहार न मनाते हो लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसका विशेष महत्व है। इसी दिन भोजली की बुआई की जाती है जिसका विसर्जन रक्षाबंधन के दूसरे दिन किया जाता है ।
यह एक ऐसा पारम्परिक लोक-पर्व है, जो लोगों को स्वस्थ जीवन के साथ ही पर्यावरण से जुड़ने की प्रेरणा और संदेश देता है।

LikeShow more reactions
Comment
Comments
Dk Sharma

सावन के दूसरे पक्ष में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरेली का त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।इस वर्ष यह २ अगस्त को है।
आज के ही दिन को मंत्र (काला जादू) सिद्ध करने का दिन माना जाता है, इससिए किसी की बुरी नजर न लगे इसलिए शहर हो या गांव हर घर के सामने शतावर, दसमूल (asparagus ) या नीम की पत्ती टांगी जाती है। क्युकी ये काफी दिन तक हरे रहते है इन्हे रोगनाशक भी माना जाता है।
घर के दरवाज़े में लगाने से बुरी शक्तियों के घर में प्रवेश रोकता है।
1 satavar (asparagus ) 2 Azadirachta indica ( neem )
गांव में कच्चे घर के सामने बुरी बला को टालने गोबर से अनेको आकृति बनाया जाता है।साथ ही यहाँ के (ग्रामीण ) निवासी रात्रि को सामान्यतः घर से बाहर नही निकलते और न ही यात्रा आदि करते है।
Dk Sharma's photo.
Write a comment...