Friday, 5 August 2016

में बासी अउ चुरकी में नून - में गावत हों ददरिया तें हा कान धर के  सून "

देवेन्द्र कुमार शर्मा  113 त्रिमूर्तिचोक  सुंदरनगर रायपुर छत्तीसगढ़ 
छत्‍तीसगढ के द्वार प्राचीन  काल से लेकर  वर्तमान समय तक  हर आगंतुक के स्वागत के  लिए सदैव खुले रहे हैं । "अतिथि देवो भव" शायद इसी प्रदेश के लिए सही रूप में फिट बैठती है। रामायण  व् अन्य  धार्मिक ग्रंथो के अनुसार  वनवास काल में श्रीराम और पाण्‍डवों को  जहां दण्‍डकारण्‍य नें आश्रय दिया था ।  वहीं    देश के   विभाजन के पश्चात  बंगाल से आये शरणार्थियों को दण्‍डकारण्‍य योजना के अंतर्गत आश्रय दिया है।तो  निर्वासित तिब्बतियो को सरगुजा जिले के मैनपाट  ने  आश्रय दिया है। कुछ लोग  छत्‍तीसगढ के इस अतिथि  प्रेम को उसकी निर्बलता  समझ लेते है। किन्तु समझने वालों को इतना ही स्‍मरण कर लेना पर्याप्त  होगा कि कौरवों को पराजित करने वाली पाण्‍डवों की विजयवाहिनी को इसी प्रदेश में बब्रुवाहन एवं ताम्रध्‍वज के रूप में दो दो बार चुनौती का सामना करना पडा था ।और छत्तीसगढ़िया ही उन पर भरी पड़े थे।

‘ भारत वर्ष में छत्‍तीसगढ का एरिया  धान का कटोरा  कहा जाता है। इसके पीछे कारण  यह है की धान की जितनी  अधिक किस्में  छत्‍तीसगढ में पायी जाती है उतनी और कही  भी आपको नही मिलेगा।  भारत में पडे  1828 से 1908 तक पडे भीषण अकालों नें  ही हमारे छत्तीसगढ़ वासियो को   बासी और नून खिलाना सिखाया है। "बटकी में बासी अउ चुरकी में नून " गीत तो आपने सुना ही होगा न।  ,जो की  आगे  इस तरह है 

बटकी में बासी अउ चुरकी में नून - में हा  गावत हावो  ददरिया  तें  हा कान  धर के  सून "
हम छत्तीसगढ़िया बटकी(कांसे का पात्र) में बासी और चुरकी  में नून तो  खाते ही है। और यही तो हमारा जीवन है ।   क्‍योंकि धान से ही तो हमारे  छत्‍तीसगढ का जीवन है । धान पर आधारित  अनेको लोकगीत बने हुए है। अर्थात धान  हमारे  गीतों में भी रचा-बसा है।
"बतकी में बासी ,दोना में दही ,
पटवारी ल बलादे  , नापन  जाही। "
  हम पके चावल को छोटे पात्र (बटकी) में पानी में डुबो कर ‘बासी’ बनाते हैं और एक हांथ के चुटकी में नमक लेकर दोनों का स्‍वाद ले के खाते हैं। ‘बासी’ रात  में डुबाया भात (पका हुआ चाँवल )  और दिन में पानी में  डुबोया भात " बोरे " कहलाता है। ह  भाई यही आम ग्रामीण  छत्तीसगढ़ियों का  प्रिय भोजन है।

और यदि साथ में दही या मठा (माहि )हो। आम के अरक्का (आचार ) ,चटनी  हो। घर के बाडी में लगाये  कांदा (शकरकन्द )की या खेड़ा  की   भी भाजी खट्टी सब्‍जी या  लाल फुल वाले  अमारी के छोटे पौधे के कोमल-कोमल पत्‍तों या उसके फूल  से बनी खट्टी चटनी ,लाइबरी (धन की लाइ  फोड़कर उससे  बनी बड़ी ) बिजोरी ,पापड़ और प्याज़  भी  साथ में हो तो क्या बात है ?

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