श्री नजीब जंग ( इस समय दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर हैं ) जब महानदी में कूद पड़े ,,,, ,,,, थे ? (पुरानी यादों में से )
धमतरी जिला के धमतरी ब्लॉक में गंगरेल बांध के निर्माण के कारण बहुत से गांव दूरस्थ और पहुच विहीन थे । इनमे पहुँचना बहुत ही कष्ट प्रद कार्य था। उस समय ये रायपुर जिला में आते थे। तब ( शायद 7 पंचायत और और उनके आश्रित कुल 32 ग्राम ) (कांकेर जिले के ) चारामा अथवा बालोदगहन (बालोद जिला) राजाराव पठार या फिर झेपरा होकर जाना पड़ता था।
आदिवासी ग्रामीण जन मुआवजा ,वन विस्थापन, जमीन बेदखली आदिसमस्या से पीड़ित होकर नगरी सकरा में एक जमीं से जुड़ा नेता थे उनके नेतृत्व में पैदल चलते हुए रायपुर पहुच कर धरना प्रदर्शन किया करते थे। शायद उनका नाम जुगलाल नागे था।
जिला में जो भी कलेक्टर पदस्थ होते ,अपने कार्यकाल में इन एरिया का दौरा कर जन समस्याओ को सुनते रहते थे।
तब उन जगहों के दौरा करना यानि काफी लंबे समय पहले से मन को तैयार करना होता था। क्योंकि अकलाडोंगरी नमक गांव से सेमरा तक पहुचना सड़क के आभाव में बड़ा ही कष्ट प्रद कार्य था। आज की स्थिति मुझे ज्ञात नही है।
अजीत जोगी जी जब कलेक्टर थे। उनके उस एरिया में कई बार दौरा हुआ.तब गांव में महिलाओ को कलश आदि से उनके स्वागत में सुसज्जित कर स्वागत द्वार आदि भी भी लोग बनाकर रखते थे।
(पुरानी फाइल फोटो से सबसे बाये मैं स्वयं )
वे तब चैन स्मोकर थे, इसलिये विल्स सिगरेट के अनेको पैकेट और मॉचिस की डिबिया भी आधिकारियो के जेब में रखे रहते थे।
फिर नजीब जंग साहब कलेक्टर पदस्थ हुये। .वे उस समय बहुत ही खूबसूरत व् दबंग व्यक्तित्व के थे। उनकी कार्यप्रणाली काफी ही अच्छे प्रशासक के रूप में रहा। साथ ही अली यावर जंग (भुपु राज्यपाल Maharashtra in 1971) के नज़दीकी रिस्तेदार होने का भी लोगो पर ज्यादा प्रभाव रहा।
खैर इनका भी दौरा डुबान एरिया में गर्मी के दिनों में हुआ । उस समय कलेक्टर भी जीप में ही चलते थे। दौरा में धमतरी से स्थानीय पत्रकार भी हमारे साथ हो लिए .जिनमे एक नईदुनिया के जियाउर हुस्सैन भी थे। इन्हें बाद में इसी एरिया की बहुत बढ़िया रिपोर्टिंग के लिए कलकत्ता में इंडिया लेवल के माने हुए पत्रकारों के साथ सम्मानित भी किया गया था।
बिना ताम झाम के पंचायत भवन अथवा स्कूलभवन में इकठ्ठे ग्रामीणों , जन प्रतिनिधियो , से चर्चा करते हुये हमारा काफिला बढ़ा चला जा रहा था।
और इस तरह हम लोग डुबान एरिया के अंतिम छोर पर पहुच चुके थे। गर्मी पुरे शबाब पर थी। आगे से बस्तर जिले के नरहरपुर का एरिया प्रारम्भ होता था।
जिला में जो भी कलेक्टर पदस्थ होते ,अपने कार्यकाल में इन एरिया का दौरा कर जन समस्याओ को सुनते रहते थे।
तब उन जगहों के दौरा करना यानि काफी लंबे समय पहले से मन को तैयार करना होता था। क्योंकि अकलाडोंगरी नमक गांव से सेमरा तक पहुचना सड़क के आभाव में बड़ा ही कष्ट प्रद कार्य था। आज की स्थिति मुझे ज्ञात नही है।
अजीत जोगी जी जब कलेक्टर थे। उनके उस एरिया में कई बार दौरा हुआ.तब गांव में महिलाओ को कलश आदि से उनके स्वागत में सुसज्जित कर स्वागत द्वार आदि भी भी लोग बनाकर रखते थे।
(पुरानी फाइल फोटो से सबसे बाये मैं स्वयं )
वे तब चैन स्मोकर थे, इसलिये विल्स सिगरेट के अनेको पैकेट और मॉचिस की डिबिया भी आधिकारियो के जेब में रखे रहते थे।
फिर नजीब जंग साहब कलेक्टर पदस्थ हुये। .वे उस समय बहुत ही खूबसूरत व् दबंग व्यक्तित्व के थे। उनकी कार्यप्रणाली काफी ही अच्छे प्रशासक के रूप में रहा। साथ ही अली यावर जंग (भुपु राज्यपाल Maharashtra in 1971) के नज़दीकी रिस्तेदार होने का भी लोगो पर ज्यादा प्रभाव रहा।
खैर इनका भी दौरा डुबान एरिया में गर्मी के दिनों में हुआ । उस समय कलेक्टर भी जीप में ही चलते थे। दौरा में धमतरी से स्थानीय पत्रकार भी हमारे साथ हो लिए .जिनमे एक नईदुनिया के जियाउर हुस्सैन भी थे। इन्हें बाद में इसी एरिया की बहुत बढ़िया रिपोर्टिंग के लिए कलकत्ता में इंडिया लेवल के माने हुए पत्रकारों के साथ सम्मानित भी किया गया था।
बिना ताम झाम के पंचायत भवन अथवा स्कूलभवन में इकठ्ठे ग्रामीणों , जन प्रतिनिधियो , से चर्चा करते हुये हमारा काफिला बढ़ा चला जा रहा था।
और इस तरह हम लोग डुबान एरिया के अंतिम छोर पर पहुच चुके थे। गर्मी पुरे शबाब पर थी। आगे से बस्तर जिले के नरहरपुर का एरिया प्रारम्भ होता था।
कुछ ग्रामवासी छोटी सी डोंगी में बैठकर आये हुए थे ने ही हमे रुकने का इशारा किया था। खैर जीप रोके गए ,उस जगह पर महानदी का पानी सड़क के बिलकुल ही नज़दीक था। अब उन्होंने अपना किस्सा बयां करना प्रारम्भ किया की कैसे उनके गांव तक सिर्फ डोंगी में ही बैठकर जाया जा सकता है। बच्चे भी स्कूल डोंगी में ही बैठकर आते है।
मैंने भी उनके बात का सपोर्ट किया ,क्योंकि मुझे कुछ ही दिन पहले पंचायत चुनाव में पोलिंग पार्टी को डोंगी में बैठा कर उस गांव तक पहुचवाना पड़ा था।
तब साथ ही मैं भी उस गांव को घूम आया था।
उनकी बात सुनी गई ,और बाकि अन्य विभाग के अधिकारियो को आगे बढ़ने कह दिया। और काफिला आगे बढ़ गया। हम लोग भी श्री रंग लाल जयपाल एस डी ओ साहब के साथ बढ़ने को तैयार हुए ही थे कि जंग साहब ने सर से हैट उतार कर पूछा यहाँ पर नदी की गहराई कितनी है.।
जानकार लोगो ने बताया की 07 से 12 फ़ीट है। तब तक उन्होंने अपनी सफ़ेद शर्ट और सफ़ेद पेंट भी उतार दी।
लोगो ने उन्हें समझाया की सर नदी में झाड़ के ठूंठ होने से यहाँ पर खतरनाक है ,साथ ही मगर भी देखे गए है। किन्तु वे बात सुनते सुनते गर्मी से परेशां होकर महानदी में कूद पड़े और तैरने लगे। तब तक पत्रकार जियाउल खान ने अपनी कैमरे से उनकी फोटो खीचने की कोशिस की ही थी की श्री जंग साहेब ने उन्हें हाथ से इशारे कर उन्हें रोक दिया। बोले मिस्टर पत्रकार तुम्हारे कैमरे को आराम करने दो ...?
खैर अब जब वे बाहर आये तो टॉवल किसी के पास भी नही था और नही उनके अर्दली ने भी रखा था। अब गीले बदन से अंडर वियर कैसे बदला जावे। तभी उनकी नज़र मेरे कंधे में रखे लाल गमछे पर पड़ी ,जिसे की मैंने अपने गर्मी से बचाव के लिए रखा था। उन्होंने उसे मेरे कंधे से खीचकर जीप के आड़ में कपडे बदल लिया। और इसके बाद नरहरपुर होते हुए हम सब वापस धमतरी लौट पड़े।
मैंने भी उनके बात का सपोर्ट किया ,क्योंकि मुझे कुछ ही दिन पहले पंचायत चुनाव में पोलिंग पार्टी को डोंगी में बैठा कर उस गांव तक पहुचवाना पड़ा था।
तब साथ ही मैं भी उस गांव को घूम आया था।
उनकी बात सुनी गई ,और बाकि अन्य विभाग के अधिकारियो को आगे बढ़ने कह दिया। और काफिला आगे बढ़ गया। हम लोग भी श्री रंग लाल जयपाल एस डी ओ साहब के साथ बढ़ने को तैयार हुए ही थे कि जंग साहब ने सर से हैट उतार कर पूछा यहाँ पर नदी की गहराई कितनी है.।
जानकार लोगो ने बताया की 07 से 12 फ़ीट है। तब तक उन्होंने अपनी सफ़ेद शर्ट और सफ़ेद पेंट भी उतार दी।
लोगो ने उन्हें समझाया की सर नदी में झाड़ के ठूंठ होने से यहाँ पर खतरनाक है ,साथ ही मगर भी देखे गए है। किन्तु वे बात सुनते सुनते गर्मी से परेशां होकर महानदी में कूद पड़े और तैरने लगे। तब तक पत्रकार जियाउल खान ने अपनी कैमरे से उनकी फोटो खीचने की कोशिस की ही थी की श्री जंग साहेब ने उन्हें हाथ से इशारे कर उन्हें रोक दिया। बोले मिस्टर पत्रकार तुम्हारे कैमरे को आराम करने दो ...?
खैर अब जब वे बाहर आये तो टॉवल किसी के पास भी नही था और नही उनके अर्दली ने भी रखा था। अब गीले बदन से अंडर वियर कैसे बदला जावे। तभी उनकी नज़र मेरे कंधे में रखे लाल गमछे पर पड़ी ,जिसे की मैंने अपने गर्मी से बचाव के लिए रखा था। उन्होंने उसे मेरे कंधे से खीचकर जीप के आड़ में कपडे बदल लिया। और इसके बाद नरहरपुर होते हुए हम सब वापस धमतरी लौट पड़े।
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