उसकी कमीज मेरी कमीज से उज़ली कैसे
( वह बड़े साहब के सामने दुम हिलाता है तो कनिष्ठ व् चपरासी के सामने शेर बन जाता है )
मध्यवर्गीय परिवार का सदस्य भी एक अजीब सा जीव होता है ,क्युकी एक और उसमे उच्च वर्ग का अहंकार तो दूसरी और निम्न वर्ग की दीनता होती है। अहंकार और दीनता से मिलकर बना उसका व्यक्तित्व बड़ा ही विचित्र होता है। वह बड़े साहब के सामने दुम हिलाता है तो अपने से कनिष्ठ व् चपरासी के सामने शेर बन जाता है। मज़ेदार बात जब होती है जब वो अपने से कनिष्ठ को ज्यादा सुख पूर्वक बैठे देख ले। तुरंत ही उसके पेट में गुड गुड गुड चालू हो जाता है। कि उसकी कुर्सी मेरी कुर्सी से अच्छी क्यू …,,,,,,? ऐसे ही बात हरिशंकर परसाई जी ने अपने एक व्यंग में लिखा था।
मैंने सामन्यतः देखा है की आज भी लोग गुलामी की मानसिकता से ऊपर नही उठ पाये है ,इनके लिए अच्छा काम करके ,लोगो की दिल जीत कर साहबी करना नही आता। ऐसे लोग लोगो को परेशान करके रुआब गाठ अपना सिक्का जमाना चाहते है।
बिचारे नही जानते है की उनकी साहबी को लोग उनके कुर्सी के सामने खड़े रहने तक ही मानते है।
कुर्सी के पीछे हंसी -मज़ाक के लिए वे रोजाना के विषय है।
आज काम करने का युग है। काम करने वाले की इज़्ज़त है न की काम को लटकाने हेतु नियम खोजने वालो की। भारत में ढीला शासन की बदनामी कराने वाले ऐसे ही लोग है शामिल है ।
सरकारी तंत्र में लीडरशिप की बात यदि करे तो मैंने अनेको अधिकारी को जो की जिम्मेदार पदो के शीर्ष में बैठे हुए रहते है ,को अपने टेबल में फाइलों के ढेरो के बीच चिड़चिड़ाते ,बौखलाते हुए बैठा पाता हु। फाइल को वे न तो यस ही कर पाते है और न ही नो कर पाने की हिम्मत है। डर अलग बैठा है की फस न जाऊ।
कोई सामने आया तो कटकन्ने कुत्ते जैसे भोक दिया ,नेता आया तो पूछ हिला दिया।
ऐसे लोग न तो फायर ही कर पाते है और न ही उसे झेल पाते है। वे भगवान के भरोसे आगे ही आगे बढ़ते जाते है। ऐसे लोग सोचते है की उनके सारे कुकृत्य दूसरे की सर में चढ़ जाये। और वह स्वयं साफ सुथरा सत्यवादी हरिस्चन्द्र की भांति दीखता रहे" भैया। स्वयं में तो दम नही और सोच में हम किसी से कम नही " और ऐसे ही इनकी जिंदगी कट जाती है।
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