अप्रतिम प्रकृति सौंदर्य के मध्य है , अध्यात्म का अलख जगातीं जगह - 'चरण-तीरथ गुफा
छत्तीसगढ़ मातृ प्रधान प्रदेश है । . माँ कौशल्या की मायके एवं भगवान श्री राम के ननिहाल होने से माता के नाम से पुत्र की पहचान भी इस प्रदेश की विशेषता है ।,यहा गाँव -कस्बो से लेकर बड़े शहरो तक विभिन्न नामो में मंदिर और उनमे स्थापित देवी माँ की मुर्तिया मिलेगी। ,और जंगल पहाड़ की घाटीओ, सुनसान मैदान, बंजर जगह में बंजारी माता जन जीवन में जगह बनायीं हुई है ।
ठंड के मौसम में जिलेवासी यहां पिकनिक मनाने व गुफा देखने के लिए काफी संख्या में पहुंचते हैं। यहां कदम-कदम पर ऐसी नयनाभिराम दृश्य हैं जिन्हें देखकर लोग रोमांच और आनंद के आकंठ में डूब जाते है। वहीं प्रकृति प्रेमी भी प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने और करीब से समझने के लिए भी चरण-तीरथ जाते हैं । जो मनुष्य की पर्यटन लालसा को तृप्त करने वाला अद्भुत स्थल के रूप में अब जाना जाना जाने लगा है।
पहुंचने का मार्ग
चरण-तीरथ जिला मुख्यालय से जबलपुर राष्ट्रीय राज मार्ग 12-ए पर स्थित बोड़ला विकासखंड अंतर्गत ग्राम बैजलपुर ,सिली पचराही से तरेगांव जंगल होते हुए पहुंचा जा सकता है। अथवा पांडातराई से बैजलपुर सिल्ली पचराही मार्ग से भी जा सकते है।यहां आने वाले पर्यटकों को मार्ग में भारत वर्ष का प्राचीनतम पुरातात्विक स्थल पचराही भी देखने को मिलेगा।
वनों से आच्छादित मार्ग पर घाटियों की खुबसूरत श्रृंखला को पार करते हुए वहा तक हम जीप अथवा बाइक के द्वारा पंहुच सकते है।, जो मनुष्य की पर्यटन लालसा को तृप्त करने वाला अद्भुत स्थल के रूप में जाना जाने लगा है।
तरेगांव जंगल पहुंचने पर हायर सेकण्डरी स्कूल के समीप से दो मार्ग मिलते हैं। एक मार्ग सीधे बाक्साइड उत्खनन क्षेत्र दलदली और सन सेट पाइंट सुखझर की अलौकिक भूमि को जाता है और दूसरा मार्ग बांई ओर लरबक्की गांव की ओर मुड़ने पर 16 किमी के अंतराल पर स्थित पवित्र भूमि चरण-तीरथ जाता है।मार्ग में जगह जगह पहाड़ी के उपर बैगा आदिवासियों की झोपड़ियों को देखा जा सकता है। पहाड़ी के ढाल पर ये खेती करते है।
बैगा आदिवासियों का भोलापन और ईमानदारी
बैगा आदिवासियों काफी सीधे होते है ,इन्हें देखकर आप इनकी उम्र का अंदाज़ नही लगा सकते। आज से २५- ३० वर्ष के पूर्व की एक घटना मुझे याद आ रही है जबकि हम लोग एडिशनल कलेक्टर श्री श्रीवास्तव के साथ उनके सरगुजा जिले में कलेक्टर बन जाने पर चरण तीर्थ गुफा देखने गए थे। वह जगह उन्हें पसंद था। और शायद उनकी मनोती भी थी। तब गुफा द्वार तक जीप पहाड़ो पर चली जाती थी। लेकिन मेरे इस बात को उस एरिया में निवास करते लोग गपबाजी समझ सकते है। क्योंकि फिर पहाड़ में अति वृष्टि से भू -स्खलन होने से वर्तमान में चरण-तीरथ का दर्शन करने के लिए 457 सीढ़ी चढ़ना पड़ता है। खैर समीप के गाव लरबक्की में कुछ बैगा आदिवासी खड़े थे। उन्होंने हाथ देकर हमे रोका। हमने समझा की इनकी कोई समस्या होगी। जीप रोका । उन्होंने जय जोहार करते हुए , हमसे बात की की उनके परिवार में किसी को किसी प्रकार के दर्द की बीमारी थी , जिसका पेट्रोल से मालिश करके इलाज़ करना चाहते थे।
ड्राइवर ने उनके बर्तन में पेट्रोल निकल कर दे दिया और चलने को हुए ही थे की उन्होंने हमे अपने पास के बर्तन में रखे दही को हमे देने लगे। मना किया तो उन्होंने भी पेट्रोल लेने से मना कर दिया। श्रीवास्तव साहब ने पीछे बैठे भृत्य को इशारा किया ,उसने दही ले ली तब वे हम लोगो के पैर छू वापस पेट्रोल लेकर चले गए।
कहने का मतलब की उन्हें मुफ्त की चीज़ लेना पसंद नही था।
आंचलिक मान्यता
दक्षिण कोसल भगवान श्रीरामचंद्र जी का ननिहाल होने के कारण वे प्रायः यहां आते रहे हैं। कहा जाता है कि श्रीरामचंद्र जी वनवास के दौरान इस क्षेत्र से निकले थे। और सबरी आश्रम शिवरीनारायण, खरौद गए थे। इस क्षेत्र से भ्रमण के स्थलों में साल्हेवारा का रामपुर, कवर्धा का भरतपुर, रामचुवा, भोरमदेव में जातुकर्ण्य मुनि के आश्रम तक तथा चरण-तीरथ में उनके पवित्र चरणों के चिन्ह उपलब्ध है। जिसके कारण इस पवित्र स्थल को चरण-तीरथ कहा जाने लगा।
चरण-तीरथ का विवरण
अरण्य की आगोश में पहुंचने पर चरण-तीरथ नामक पवित्र स्थल मिलता है। इस स्थल को कब से चरण-तीरथ कहा जा रहा है और श्रीराम के चरण चिन्ह यहां पर कब से है। यह एक रहस्य है। अब चरण-तीरथ का दर्शन करने के लिए 457 सीढ़ी चढ़ना पड़ता है जैसे ही ऊपर पहुंचते हैं सर्वप्रथम भरतकुण्ड के दर्शन होते हैं। जहां नर्मदा जी का शीतल निर्मल जीवनदायिनी जल अनवरत प्रवाहित होकर एकत्र हो रहा है। लेकिन वह जल एक छोटे से कुण्ड से कहां जा रहा है यह पता नहीं चलता। इस प्राकृतिक जल में नर्मदा जल की झलक लोगो को मिलती है। कवर्धा जिले के आस पास के एरिया में ,, नर्मदा कुंड झिरना पिपरिया, यह पर केवडा के दलदली जगह में वन है। नर्मदा कुंड रामचुवा ,नर्मदा कुंड गंडई आदि भी प्रसिद्ध है । चरण-तीरथ जगह में के भरत कुंड के समीप ही महादेव शिव, जगत जननी मां जगदम्बे एवं रामदूत श्री हनुमानजी की पाषाण प्रतिमा विराजित हैं। यह कुंड गुफा से आती हुई जल से बना है। ठीक सामने विशाल मैकल पर्वत की पाषाण गुफा परिलक्षित होता है। लगभग 6 फीट ऊंची गुफा के भीतर अंधेरे का साम्राज्य है। जहां बगैर टार्च या दीपक की रोशनी के प्रवेश नहीं किया जा सकता है। एक-एक करके ही प्रवेश किया जा सकता है।
जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं जल स्त्रोत के साथ-साथ गुफा की गहराई में वृद्घि होने लगता है। इस गुफा की अद्भूत बात यह है कि ठोस पत्थरों से बनी इस गुफा में जल कहां से आ रहा है यह पता नहीं चलता। चर्चा है कि यह सीधे नर्मदा नदी से संबंध है। समीप ही गुफा के बाए और बरसात में झरना सा थोड़ा थोड़ा पानी झर झर कर गिरता रहता है।
जिस पर मधुमक्खियों का छत्ता भी लगा हुआ दिख जाता है। गुफा के ठीक ऊपर लकड़ी की सीढ़ी चढ़ने पर 8 फीट की ऊंचाई पर एक और गुफा है।जिसमे साधु आराम भी करते कभी कभी मिल जाते है। जहा से दूर तक नज़र डाली जा सकती है। स्थानीय लोग जिसे इसके बनावट के कारण 'लक्ष्मण माच' कहा जाता है। यहां पर श्रीराम सीता और लक्ष्मण की प्राचीन मूर्तियां हैं। निकट ही बाघमाड़ा है। जहां से पहाड़ी पर चढ़कर चारों ओर का विहंगम दृश्य देखने पर ऐसे लगता है जैसे प्रकृति ने पर्वतों से एक विशालकाय कटोरे का निर्माण कर दिया है।
मकर संक्रांति पर लगता है मेला
चरण-तीरथ की महिमा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर लगने वाले मेले में दर्शन करने श्रद्घालु बालाघाट, मंडला, डिंडौरी, बिलासपुर जिले से पैदल चलकर हजारों लोग आते हैं। इस मेले में सांस्कृतिक दृश्य भी देखने को मिलते हैं। विशेष तौर पर गोंड़, बैगा, कंवर आदिवासियों को उनके संपूर्ण पारंपरिक वेशभूषा में देखना मनोहारी होता है।
ठंड के समय इस स्थल पर पिकनीक एवं वनभोज के लिए भी लोग आते हैं।
मनोरम स्थान है। 2000 में गया था, यादें ताजा हो गयी।
ReplyDeleteमनोरम स्थान है। 2000 में गया था, यादें ताजा हो गयी।
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